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Propose Day ( प्रपोज डे!)

उससे मिलने से पहले उसके लिए बस सन्डे ही खास हुआ करता था! उनकी मुलाक़ात को लगभग 6 महीने हो चुके थे। धीमी धीमी इश्क़ की आँच बढ़ने लगी थी। एक दूसरे के लिए छत पे, गली में, छुट्टी के टाइम, इत्तेफाक टाइम नज़रे बिछी रहती थी। गाहे बगाहे एक दूसरे को देखते ही मुस्कान ऐसे ही चेहरे पे आजाया करती थी।



उसकी छुट्टी के बाद वो रोज़ उस गली में उसका इंतज़ार करता था। कुछ देर की मुलाक़ात में वो देर तक खुद को ही ढूंढा करता था। बातों को आगे बढ़ाने के लिए 5 ₹ वाली डेरीमिल्क ही काफी हुआ करती थी। उसी दौरान लड़के ने एक पर्ची में अपना फोन नम्बर भी देदिया। लड़की के घर सिर्फ दो ही मोबाइल थे एक उसके पाप का और दूसरा मम्मी का! मम्मी वाले फोन से ही कभी कभार 4-5 मिनट की प्रेम वार्ता हो जाती थी।
ये वो समय था जब लड़का उसकी call की आवाज़ रिकॉर्ड कर दिनभर सुना करता था। उस विशेष नम्बर के लिए अलग 'टाइटैनिक' वाली रिंगटोन भी सेट हो गयी थी। "Lifetime" नाम से एक नया कॉन्टेक्ट भी सेव हो चुका था। जब भी वो 'टाइटैनिक' टोन बजती तो जियरा अपने आप धक्क हो जाता। लड़के को उसके मिसकॉल का इंतज़ार हमेशा रहता।
लड़का रोज़ की तरह छत पे खड़ा पतंग उड़ा रहा था। वो छत पे कपड़े सुखाने आई थी। आँखे बोलती भी थी और सुनती भी!
ये जरूरी नहीं कोई रिश्ता हो तुझ से,
सुकूं देता है, तुम्हारा नज़रों में रहना भी!
इत्तेफ़ाक़ से उस दिन वहां कोई भी न था। इत्ते में वो टाइटैनिक टोन बजी
नज़रे एक दूसरे पर और आवाज़ फोन पे।
"hmmmm अच्छी लग रही हो!"
"अच्छा जी!"
"कैसी हो?"
"अच्छे हैं!"
"कुछ पूछना है तुमसे!"
"हाँ पूछिये"
अब धड़कन बढ़ने लगी थी! सांसे तेज़ी से उप्पर निचे हो रही थी। पतंग का भी कोई होश न था! डरते हुए लड़के ने पूछा:
"शादी करोगी हमसे?" (ये साला हकपकाहट में क्या से क्या पूछ लिया!)
"...." (सन्नाटा)
"सॉरी ये सब नही बोलना था हमे! सॉरी यार! plz बात करना मत बन्द करना। हम दोस्त ही रहेंगे," घबराते हुए कह डाला।
"अगर शादी न करना होता तो आपसे बात ही क्यों करते?"
अब एक अलग बन्धन का अनुभव हो रहा था। एक अलग हक़! एक अलग रिश्ता वैसा जैसा पहले कभी नही लगा!"
"तुम बहुत अच्छी हो यार!"
"वो तो हमे नही पता पर आप पता नही क्यों अच्छे लगते हैं हमे "
"hehehe..."
"आये मम्मी! सुनो मम्मी बुला रही हैं फोन मत करना। बाद में बात करेंग bye लव यू!!"
प्यार के इजहार बजाय शादी को पूछ लिया,
सच है प्रेम में सब अपने आप हो जाता है!
पछतावा जैसा कुछ नहीं होता। बस इकरार होता है। हाँ वही प्रपोज डे था अपना! क्योंकि प्रेम तारीखों का मोहताज़ नही होता। कहानी भले ही अधूरी हो पर प्रेम... प्रेम तो मुकम्मल होता है अपने आप में!
कोई गुनगुना रहा था, "मांग के साथ तुम्हारा, मैंने मांग लिया संसार..."
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