आधी रात में जगा के कहती हो कि “उठिए! हमें डाँस करना है आपके साथ!” और हमको ज़बरजसती उठा के “लग जा गले कि फिर ये हँसीं रात हो न हो..” पर नींद में डाँस भी कर लेती हो! और डाँस करते करते साथ में इतना मस्त हो जाती हो के गाना “लग जा गले” से कब “जय हनुमान ज्ञान गुन सागर..” पे चेंज हो जाता है पता भी नही चलता तुमको! तुम्हारी ज़िद्द कभी कभी मुस्कान भी देदेती है हमको, पर बस कभी कभी! मेरे दो दोस्तों के सामने डेढ़ खम्भा दारू गटकने के बाद हमको प्रपोज़ मार देती हो और हम ससुर आधे नंगे मारे शरम के खिसिया जाते हैं! ऐसे सबके सामने प्रपोज़ करते हैं का?
तुमको शक तो है मेरी आवारगी पे पर यक़ीन भी तो मेरे प्रेम पर! कि प्रेम करते हैं तुमसे! बहुत प्रेम! दिन भर में भले ही सौ बार आइ लभ यू न बोलें, बार बार फ़ोन भी रिसीव न कर पाएँ, एक msg का रिप्लाई न कर पाएँ पर तुम जानती हो के दिल तुमपे ही अटकता है मेरा! तुम ही तो धड़कती हो इसमें! अब कोई और हमारे लिखे में ख़ुद को ढूँढे तो हम का करें? हम तो तुमको लिखते हैं न! सिम्प्ली तुमको! तुम जो ये मुँह टेहड़ा करके छोटी छोटी बात पे टिनुक जाती हो और मान भी ख़ुद ही जाती हो न! हाँ ये तुम्हारा टिनुकना बहुत रास आता है हमें! तुमको मनाना मुमकिन नही है! बिलकुल भी नहीं! पर वो जो तुम हर झगड़े के बाद गले से लिपटती हो न साला अपना प्रेम दो फल्लांग ऊपर कूद जाता है!
तुम्हारा छल्ला भी तेवारी जी से छीन लिया है हमने! आदत है उनकी हर सामान अपने बैग में डाल लेने की! तुम्हारा ईयरफ़ोन और चार्जर भी तो ऊँन्ही के बैग से बरामद हुआ था न! तुम्हारा काजल, घड़ी और हेयरबैंड छूट गया था यहाँ! वाशबेसिन के पास एक सेफ़्टी-पिन भी रह गयी थी! सब सहेज के अपने बैग में रख दिया है! अगली बार बिन बताए आना तो लेती जाना!
सुनो! तुम्हारे ग़ुस्से से डर लगता है हमको! इस बात का डर नही के कहीं खो न दें तुमको बल्कि इस बात का डर ग़ुस्से का मुखौटा पहन के कहीं अंदर ही अंदर टूट न रही हो तुम! ताक़त हो तुम हमारी! साला ग़ुस्सा इस क़दर हावी होता है के हमारे शहर में आकर भी बिना मिले चली जाती हो तुम और वापिस जाकर कहती हो “आपको फ़ुर्सत ही कहाँ रहती है अपने दोस्तों के सिवा?” यार बीच में हमारे दोस्तों को मत घुसेड़ा करो! साला ले दे के एक यही तो हैं जिनसे तुम्हारी बुराई बतला लेते हैं! तुम्हारी चाहत बघार लेते हैं! किसी के काजल की तारीफ़ सुना देते हैं! किसी के दाँतों की बनावट पे आह भर लेते हैं और किसी के ग़ुस्से के तूफ़ान को समेट लेते हैं! इशक, प्यार,मोहब्बत, लव, लपाटा अपनी जगह है और दोस्ती,यारी,आवारगी और आइयाशी अपनी जगह! दोनो मिक्स हो ही नही सकते! जहाँ दोनों मिक्स हुए वहाँ किसी एक को इंफ्रियारिटी काम्प्लेक्स होना तय है! और हम चाहते ही नही के कभी ऐसी नौबत ही आए!
ये जो तुम “सुनिए” “सुनिए” “सुनिए” कहती रहती हो न! जबतक हम “hmmmm” “बोलो” के बाद “कहिए” न बोल दें, तो सुनो! तुम्हारे इस “सुनिए!” का इंतज़ार हमें हर सुबह रहता है! हर सुबह जागने के बाद! हर रात सोने से पहले और हर बार जब तुम बात की शुरुआत करती ही तब! ज़्यादा बातें नही कर पाते तुमसे, इसलिए नही के कोई और पसंद आगयी है बल्कि इसलिए के ज़्यादा बातों के बाद तुमसे झगड़ा होना तय ही रहता है लगभग! पर सुकून तो तुमसे बात करके ही आता है! तुमको गले लगा के आता है! तुमको चूम के आता है! ये जो अचानक से “आप के पास आना है!” कह के चुप हो जाती हो न! हाँ वहाँ बहुत कुछ बोल जाती है तुम्हारी चुप्पी! बहुत कुछ बता जाती है तुम्हारी चुप्पी! बहुत कुछ पूछ जाती है तुम्हारी चुप्पी!
हो सकता है मेरे शब्द सीमित हों! लेख सीमित हो! सब पुराना हो! मेरी सोच संकुचित हो! मेरा लहजा फ़िक्स हो! पर मेरी भावनाएँ असीमित हैं! अनंत है! बिलकुल उस छोटे बच्चे के सवाल की तरह जो ये सोचता फिरता है के सूरज के पीछे क्या होगा? समुद्र को अगर किसी ने मोड़ दिया तो? हवा लगती तो है पर दिखती काहे नही? पानी का रंग क्यूँ नही है? मैलोडी इतनी चोकलेटि क्यूँ है? हम क्लोरोमिंट क्यूँ खाते हैं और सचिन ने कितने बनाए? भावनाएँ तुम हो! तुमसे हैं भावनाएँ!
ख़ैर! अब आगे का नही सोचते! अभी को सोचते हैं! आज में जीते हैं! तुम में जीते हैं! कल की फ़िकर के लिए आज क्यूँ बर्बाद करें? कल का किसे पता है?कल का क्या भरोसा है? कल को शायद पछताना ही पड़े! तो तुमको खो के क्यूँ पछताना? उससे अच्छा है चलो साथ पछताते हैं! मिलकर! एक़साथ! ताउम्र! ताउम्र!