By Anuj Bisht
इन्तजार
आज फिर वो उस कच्ची सड़क की ओर देख रही थी जहा पर अकसर बस रुका करती थी घंटो बाद एक बस आई और धूल उडाती हुई चली गई मैं पास ही खेत की नहर में बैठा था,
मैंने पूछा, क्या देख रही हो – माँ
उसने कहा – अरे कुछ नहीं , अच्छा लगता हैं बस को देखना !
शायद मैं भूल गया था कि हफ्ते दस दिन पहले ही बाबा की चिट्ठी आई थी जिसमे लिखा था कि जेठ माह की पचिश्(25) तारीख को मैं आ रहा हूँ लेकिन ना जाने ऐसी कितनी ही चिट्ठियां उसकी अलमारी में पड़ी रहती और आने के नाम पर उसे सिर्फ इन्तजार ही मिलता ।
.
मुझे पता था की उसे हमेशा ही बाबा का इन्तजार रहता है और हो भी क्यों ना आखिर किस पत्नी को अपने पति का इन्तजार नहीं होगा । याद है मुझे उसका वो करवा चौथ जब वो उस दिन अपनी शादी की फ़ोटो देख रही थी और जब रात को चाँद दिखाई दिया तो उसकी नजरें वो हाथ ढूंढ रही थी जो उसे पानी पिला सके ।
पर फिर भी ऐसे ही कई लम्हों को वो किस्मत मान कर स्वीकार कर लेती ।।
.
सुना हैं मैंने जब मुझे जन्म दिया था उसने तो सात(7) महीने तक घर का सारा काम किया उसने , खेतो से लेकर दूर से पानी लाने तक का जो उस से हो पाया उसने किया, और बाबा, बाबा तो सिर्फ चिट्ठियों में ही उसके साथ थे ।
.
तभी अचानक फिर से हार्न की आवाज सुनाई दी उसने झट से उत्सुकता के साथ फिर देखा और जल्दी बाजी में अपने हाथ में दराती चला दी तभी खून बहने लगा और मैं दौडता हुआ उसके पास गया और उसके हाथ को जो कि मिटटी से सने थे उस खून को चूसने लगा फिर मैंने उसके हाथ में जहा खून बह रहा था मिटटी लगा दी और कहा – क्या माँ देख के किया करो ना
वो थोड़ी चिड़चिड़ी सी हुई शायद उसे दर्द हो रहा था और कहा – हाँ, हाँ जा तू खेल ले ।
धूप बहुत तेज हो गई थी और उसके बदन पर सीधे पड़ रही थी पसीने से लत पत वो अभी भी खेत में लगी हुई थी और मैं नहर की छाव में खेलता हुआ उसकी सेहन शक्ति देख रहा था
.
कुछ देर बाद एक और बस की आवाज आई उसने फिर बस की तरफ देखा पर वो तो रुकी भी नहीं और धूल उड़ाते हुए आगे चली गई ।
उसने उठ कर एक लंबी सास ली और फिर सूरज की तरफ देखा और मुझे घर चलने को कहा
मैं काफी देर से उसके मन को पढ़ रहा था पर छोटा था तो समज नहीं पा रहा था
पर ना जाने कैसे मेरे मन में क्या आया और मैंने उससे रास्ते में चलते हुए कहा – माँ तेरा बेटा जिस दिन बोलेगा ना उसी दिन सुबह- सुबह की पहली गाड़ी से आएगा और हा सूट बूट में आऊंगा मैं
.
उसके चेहरे पर मुझे हलकी मुस्कान अच्छी लग रही थी जाने क्यों मुझे बहुत अच्छा लग रहा था और उसे देख कर मेरा दिल भर आया मैंने फिर कहा – माँ मैं बाबा की तरह कभी नहीं बनूगा , नहीं बनूँगा , कभी नहीं बनूंगा ।
उसने मेरे सर पर हाथ फेरा शायद उसके पास कहने को कुछ नहीं था ।
तभी एक और बस हार्न बजाते हुए आई और सड़क पर रुक गई मुझे पता था की वो पीछे मुड़ कर जरूर देखेगी पर इस बार उसने नहीं देखा
और ना ही देखने की कोशिश की
मैंने कहा – माँ ब…….स…..
उसने मेरा हाथ कस कर पकड़ा और कहा – अरे छोड़ ना जाने दे और सीधे घर की ओर चलने लगी
.
मैंने उसका चेहरा देखा पर जाने कौन सा सन्तोष था उसमे शायद मेरी बात का जो मैंने उससे जाने अनजाने में कही
फिर उसने कहा- मेरे लाटे क्या बनाना है आज तेरे लिए
.
मैंने सरारती मुस्कान भरी और अपना मुँह सिखोडा और कहा – वो मीठा भात माँ खुस्का ।।।।।
.
…………………………………………………………..
अब सोचता हूँ की माँ जैसी कितनी ही महिलाये ऐसे ही शादी के बाद अकेले अपना जीवन यापन करती हैं पुरुष प्रधान देश तो है हमारा पर उत्तरांचल में काम के मामलो में औरत प्रधान हो जाता है महिलाये घर का , खेत का ,दूर से पानी लाना गाय भैस को देखना जैसे सारे काम करती हैं पति तो बस शहर में नौकरी कर रहा हैं और बच्चे भी नौकरी और पढ़ाई के चक्कर में इधर उधर भटक रहे है और इन सब के बदले उन्हें मिलता है तो सिर्फ — इन्तजार
मैंने पूछा, क्या देख रही हो – माँ
उसने कहा – अरे कुछ नहीं , अच्छा लगता हैं बस को देखना !
शायद मैं भूल गया था कि हफ्ते दस दिन पहले ही बाबा की चिट्ठी आई थी जिसमे लिखा था कि जेठ माह की पचिश्(25) तारीख को मैं आ रहा हूँ लेकिन ना जाने ऐसी कितनी ही चिट्ठियां उसकी अलमारी में पड़ी रहती और आने के नाम पर उसे सिर्फ इन्तजार ही मिलता ।
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मुझे पता था की उसे हमेशा ही बाबा का इन्तजार रहता है और हो भी क्यों ना आखिर किस पत्नी को अपने पति का इन्तजार नहीं होगा । याद है मुझे उसका वो करवा चौथ जब वो उस दिन अपनी शादी की फ़ोटो देख रही थी और जब रात को चाँद दिखाई दिया तो उसकी नजरें वो हाथ ढूंढ रही थी जो उसे पानी पिला सके ।
पर फिर भी ऐसे ही कई लम्हों को वो किस्मत मान कर स्वीकार कर लेती ।।
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सुना हैं मैंने जब मुझे जन्म दिया था उसने तो सात(7) महीने तक घर का सारा काम किया उसने , खेतो से लेकर दूर से पानी लाने तक का जो उस से हो पाया उसने किया, और बाबा, बाबा तो सिर्फ चिट्ठियों में ही उसके साथ थे ।
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तभी अचानक फिर से हार्न की आवाज सुनाई दी उसने झट से उत्सुकता के साथ फिर देखा और जल्दी बाजी में अपने हाथ में दराती चला दी तभी खून बहने लगा और मैं दौडता हुआ उसके पास गया और उसके हाथ को जो कि मिटटी से सने थे उस खून को चूसने लगा फिर मैंने उसके हाथ में जहा खून बह रहा था मिटटी लगा दी और कहा – क्या माँ देख के किया करो ना
वो थोड़ी चिड़चिड़ी सी हुई शायद उसे दर्द हो रहा था और कहा – हाँ, हाँ जा तू खेल ले ।
धूप बहुत तेज हो गई थी और उसके बदन पर सीधे पड़ रही थी पसीने से लत पत वो अभी भी खेत में लगी हुई थी और मैं नहर की छाव में खेलता हुआ उसकी सेहन शक्ति देख रहा था
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कुछ देर बाद एक और बस की आवाज आई उसने फिर बस की तरफ देखा पर वो तो रुकी भी नहीं और धूल उड़ाते हुए आगे चली गई ।
उसने उठ कर एक लंबी सास ली और फिर सूरज की तरफ देखा और मुझे घर चलने को कहा
मैं काफी देर से उसके मन को पढ़ रहा था पर छोटा था तो समज नहीं पा रहा था
पर ना जाने कैसे मेरे मन में क्या आया और मैंने उससे रास्ते में चलते हुए कहा – माँ तेरा बेटा जिस दिन बोलेगा ना उसी दिन सुबह- सुबह की पहली गाड़ी से आएगा और हा सूट बूट में आऊंगा मैं
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उसके चेहरे पर मुझे हलकी मुस्कान अच्छी लग रही थी जाने क्यों मुझे बहुत अच्छा लग रहा था और उसे देख कर मेरा दिल भर आया मैंने फिर कहा – माँ मैं बाबा की तरह कभी नहीं बनूगा , नहीं बनूँगा , कभी नहीं बनूंगा ।
उसने मेरे सर पर हाथ फेरा शायद उसके पास कहने को कुछ नहीं था ।
तभी एक और बस हार्न बजाते हुए आई और सड़क पर रुक गई मुझे पता था की वो पीछे मुड़ कर जरूर देखेगी पर इस बार उसने नहीं देखा
और ना ही देखने की कोशिश की
मैंने कहा – माँ ब…….स…..
उसने मेरा हाथ कस कर पकड़ा और कहा – अरे छोड़ ना जाने दे और सीधे घर की ओर चलने लगी
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मैंने उसका चेहरा देखा पर जाने कौन सा सन्तोष था उसमे शायद मेरी बात का जो मैंने उससे जाने अनजाने में कही
फिर उसने कहा- मेरे लाटे क्या बनाना है आज तेरे लिए
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मैंने सरारती मुस्कान भरी और अपना मुँह सिखोडा और कहा – वो मीठा भात माँ खुस्का ।।।।।
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अब सोचता हूँ की माँ जैसी कितनी ही महिलाये ऐसे ही शादी के बाद अकेले अपना जीवन यापन करती हैं पुरुष प्रधान देश तो है हमारा पर उत्तरांचल में काम के मामलो में औरत प्रधान हो जाता है महिलाये घर का , खेत का ,दूर से पानी लाना गाय भैस को देखना जैसे सारे काम करती हैं पति तो बस शहर में नौकरी कर रहा हैं और बच्चे भी नौकरी और पढ़ाई के चक्कर में इधर उधर भटक रहे है और इन सब के बदले उन्हें मिलता है तो सिर्फ — इन्तजार