ये कहानी है उस दौर की. जब कॉलेज में 2 कंपनियां आ कर चली गईं थी. और मेरा प्लेसमेंट अभी नहीं हुआ था. हौसला बढ़ाने के लिए घर पर मां थी. और महीने में एक बार फोन करके ‘पैसे हैं कि नहीं’ पूछने वाले पापा भी. पर मैं उन्हें अपनी मनोदशा बताना नहीं चाहता था. हां एक और भी तो थी मेरे पास जो सब जानती थी. जो हिस्सा रही है इस सफर का. 2004 से 2008 तक. कहानी अब 2005 में हैं. जब इंजीनियरिंग कॉलेज में एक साल पूरा हो चूका था. और तमाम रैगिंग और शुरुआती इंटरैक्शन्स के बावजूद मैं किसी से भी ज्यादा घुल-मिल नहीं पाया था. वो थी मेरे ही आस-पास. कई बार बुक बैंक में नज़रें मिली. कई बार एक ही टेबल पर आमने-सामने पढ़े. नेस्कैफे में एक ही ग्रुप में खड़े हो कॉफी पी थी. पर मैं सिर्फ उसका नाम ही जान पाया था. और ये भी श्योर नहीं था कि वो भी मुझे नाम से जानती है या नहीं.
मुझे याद है. मेरी और उसकी बॉन्डिंग पहली बार एनुअल कॉलेज फेस्ट में हुई थी. हम दोनों ही नीली जीन्स और ग्रे टी-शर्ट में कॉलेज आए थे. कॉलेज का रॉक बैंड परफॉर्म कर रहा था. हम भीड़ से पीछे की तरफ खड़े हो, बाकी लोगों को सर हिलाते और नाचते देख रहे थे. शायद मन था भीड़ में शामिल होने का, शायद झिझक भी थी. इसलिए हर बीट पर दोनों के दाहिने पैर टैप कर रहे थे. तब तुमसे पहली बार बात हुई थी. मैंने सीधे तुम्हारा नाम ही लेके बातें शुरू की थी. और उन लोगों पर जोक मारा था. जो नाच रहे थे हेड बैंगिंग करते हुए. तुम खिलखिला के हंसी थी.
और फिर तुमने मुझसे पूछा, ‘मैं रेगुलरली बुक बैंक क्यों नहीं आता हूं’. और मैंने जवाब दिया था, ‘बस यूं ही’. तुम फिर से मुस्कुराई थी. उस दिन हमने फोन नंबर भी एक्सचेंज किए. और फेस्ट ख़त्म होने के बाद मैं इधर-उधर की बातें करता हुआ तुम्हारे साथ वाक करते हुए तुम्हारे हॉस्टल के गेट तक गया था. तुम मेरे फ़ालतू जोक्स पर भी हंसती रही थी. उस शाम मैंने सिगरेट नहीं पी. और रात में तकरीबन 12:30 बजे अपने नोकिया 1100 से “It was nice talking to you” मैसेज किया था. फ़ौरन मेरे फोन की बीप बजी. और मैंने उत्सुकता से मोबाइल देखा. वो मैसेज की डिलीवरी रिपोर्ट थी. उन दिनों मोबाइल में मैसेज बीप बजना एक अलग ही अहसास होता था. 2 मिनट बाद ही तुम्हारा रिप्लाई आया, “same here”.
फिर अगले दिन मैं अपने रूम पार्टनर की प्रेस की हुई शर्ट पहन कॉलेज पहुंचा था. हमारी बातों के सिलसिले उस दिन से शुरू हो गए थे. कैंटीन से लेके कॉफ़ी तक. और लैब से लेकर बुक बैंक तक हम साथ ही रहते. और कॉलेज से लौटने के बाद मोबाइल पर मैसेज. मुझे याद है, तुम कैसे पढ़ते वक़्त अपनी उंगलियों में पेन घुमाया करती थी. और न्यूमेरिकल सॉल्व करते वक़्त कैसे अपने बालों की लट को कान के पीछे ले जाया करती थी. तुम कुछ पूछ न लो इस डर से मैं भी पहले से ही पढ़ के आया करता. और बुक बैंक में नज़रे बचा कर बस तुम्हे देखता. मुझे आज तक याद है कि कैसे मैं कोशिश करता था कि फ़ोन मेमोरी फुल होने पर मैं तुम्हारे मैसेज डिलीट न करूं. कभी सिम में ट्रांसफर करूं तो कभी ड्राफ्ट बना के सेव कर लूं. वो साथिया की रिंगटोन जो तुमने सेंड की थी वो तब तक मेरी रिंगटोन रही जब तक वो फोन मेरे पास रहा. मुझे याद है कि कैसे तुम कहती थी कि हर कैसेट में दूसरा गाना बेस्ट होता है.
मैं नहीं भूल सकता वो शाम जब हम पहली बार फिल्म देखने गए थे. मैंने दोस्त की CBZ उधार ली थी. और फिल्म से लौटते वक़्त बस अड्डे के पास गोल गप्पे खाए थे. उस शाम जब मैंने तुम्हे हॉस्टल छोड़ा था तब कैसे हॉस्टल की एंट्री के पास घंटों हमने बेवजह की बातें की थी. तुम अंदर नहीं जाना चाहती थी और मैं भी वापस नहीं जाना चाहता था. बातों-बातों में रात के 1 बज गए थे. उस दौर में नींद भी कहां आती थी. मैं नहीं भूल सकता वो अनगिनत बार जब तुमने कहा था कि मेरे जैसे लोग इस दुनिया में रेयर हैं. और कैसे तुम लकी हो मुझ जैसा दोस्त पाकर. अगले 3 साल हम साथ-साथ ही थे. कई बार लड़े पर हर बार या तो तुमने या मैंने एक हफ्ते की ख़ामोशी के बाद बात करने की शुरुआत कर ली. आखिरी सेमेस्टर से पहले तक सब ठीक ही चला. तुम कैट की तैयारी करती रही और मैं कैंपस प्लेसमेंट की.
याद है जब कंपनी आने का नोटिफिकेशन हम दोनों ने साथ ही नोटिस बोर्ड पे देखा था. और कंपनी क्राइटेरिया में थ्रू आउट फर्स्ट क्लास मांगा था. मैं उदास हो गया था ये देखकर और तुम्हारी आंखों में चमक थी. तुमने कहा था कि चलो अच्छा है कॉम्पटीशन कम हो जाएगा. पर तुम मेरी आंखें नहीं पढ़ पाई थी. ख़ैर मैंने भी कभी बताया नहीं कि कैसे बारहंवी के पेपरों में मेरा अपेंडिक्स का ऑपरेशन हुआ था. और मैं कॉम्पटीशन से बिना फेल हुए ही बाहर हो गया. जिस दिन इंटरव्यू हुए मैं कॉलेज ही नहीं आया. तुम्हें बेस्ट ऑफ़ लक का मैसेज किया और बैठा रहा हॉस्टल के कमरे में. शाम को तुम्हारा मैसेज आया. सिलेक्टेड. मैंने Congrats रिप्लाई किया. और तुमने नाम गिनाए कि किस-किस का सलेक्शन हुआ है.
2 दिन बाद तुम्हारे साथ सेलेक्ट हुए लोगों की पार्टी कि खबर भी ऐसे ही उड़ते मिली. अगली कंपनी आई. उसमें भी वही क्राइटेरिया था. मैं अब निराश हो चला था और तुम्हारे भी दोस्त बदल चुके थे. अब तुम्हारे पास एक नया ग्रुप था. वो लोग जो एक साथ उस कंपनी में प्लेस हुए थे. और मेरे आस-पास मेरी ही तरह हारे लोग. जो एजुकेशन लोन के तले दबे थे. या अपने परिवार के सपनों तले. आखिरी सेमेस्टर था. इस बार तुम्हारे बुक बैंक के साथी भी बदल गए थे. और मैंने भी बुक बैंक आना बंद कर दिया था. अब मैसेज टोन भी कम ही बजती थी. और साथिया वाली रिंगटोन मैंने सिर्फ तुम्हारे नंबर पर ही असाइन कर दी थी. एक awkward सी ख़ामोशी आ चुकी थी हम दोनों के बीच. मैं कई बार तुम्हें फोन करके रोना चाहता था. अपनी असफलता की कहानियां सुनना चाहता था. कई बार नंबर डायल करके रिंग जाने से पहले मैंने काट दिया.
वो अंधेरे के दिन थे. फाइनल एग्जाम वाले दिन हम लगभग एक अजनबी की तरह ही मिले. तुमने पिछले 3 साल याद किए और मुझे बताया कि कैसे I have been the best person you have ever met. हमने एक और बार कॉफ़ी साथ पी. जो संभवतः हमारी आखिरी कॉफी थी. मैं उस शाम ज्यादातर खामोश ही रहा. जब कॉफ़ी ख़त्म हुई तो मैंने पूछा, चलो हॉस्टल छोड़ देता हूं. तुमने मुस्कुरा कर कहा, नहीं. अभी किसी के साथ मूवी का प्लान है. उस “किसी” का अंदाजा मुझे भी था. क्योंकि वो नेस्कैफे के पीछे से शशंकित भाव से मुझे देख रहा था. पर जिसकी वक़्त ने मौज ली हो वो दर्द से कराह भी नहीं पाता. मैं चुप ही रहा और तुमने जाते-जाते कहा, “Be in touch”
आज अचानक बेंगलुरु में कोरमंगला में कॉफ़ी पीते तुम दिखी, उसी “किसी” के साथ. और तुम्हारे सामने वाली टेबल पर बैठा मैं. अपने 3 और आईआईएम बैचमेट्स के साथ. 2004-2008 सब आंखों के सामने तैर गया. तुम देख के भी खामोश रही और मैं बिना किसी बात टेबल पर हाथ मार खिलखिला के हंसा.