Some Lines dedicated to dehradun

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गडी कैंट और डाकरा आज भी सूर्य अस्त होने पर मस्त हो जाते हैं

आज भी बंगाली मोहल्ले के दीवाने
दो दो हाथ चलाने में दिन भर व्यस्त हो जाते हैं
पलटन बाज़ार में वही हुजूम वही जमावड़ा बरकरार है
कचहरी के पास राजमा चावल बेचता आज भी खड़ा वही मेहनतकश
सरदार है
चाट वाली गली में आज भी अंगुलियाँ चाटती महिलाएं व
युवतियां दिखती हैं
भल्ला पापड़ी, गोलगप्पों, टिक्कियों की बिक्री इन्ही के दम पर
टिकती है
रामा मार्केट में “आइये बहनजी” की वो पुरानी दरखास्त अब
भी चलती है
पब्लिक अभी भी विक्रम के धुंवे से परेशान हो आँखें मलती है
दिग्विजय सिनेमा में “लुट गई जवानी” “प्यासी डायन” के
शो अभी तक चालू हैं
कोल्ड ड्रिंक व आइसक्रीम की जगह अब प्रेमिकाओं
को भाता छोटा भालू है
राजपुर रोड पर हसीनो का जलवा सुबह से शाम तक दिखता है
अब हॉट बाइट्स की जगह बरिस्ता, मैक डी का सामान
इनके ही बल पर बिकता है
कांग्रेस भवन के पंडित जी की कचोरी तो अब न रही पर
जैना रेस्टूरेंट चल रहा है
अब भी गणेश भाई की चाय से झांजी समाज पल रहा है
एम् के पी की लडकियां अब भी बन्नू, गाँधी और
साधुराम कॉलेज के मनचलों को लुभाती है
वेल्हम्स की राज्दुलारियाँ हर ऐतवार को एस्ले हाल में आज
भी जवां दिलों को धड्काती है
ओरियंट का बोलती बंद पान बुडबक नेताओं तक का मुहं बंद करने में
अब तक कामयाब है
तारा मच्छीवाला बूढा हुआ पर उसकी मछली अभी भी लाजवाब है
प्रिंस चौक पर अब वो देर रात तक अंडे और डंडे
तो नहीं मिला करते
प्रभात के फुर्तीले पानवाले के हाथ भी अब उस फुर्ती से
नहीं चला करते
मोती बाज़ार के कत्लम्बे हों या हनुमान चौक के चेतन
की पूड़ियों का स्वाद
अन्टू, फंटू और घंटू के पीछे, आज भी है आधा देहरादून बरबाद
के सी के मोमो ने तिब्बत्ती में देसी का तड़का लगाया है
नजीबाबाद के लौंडे का सर भी, तिब्बती छांग पी चकराया है
चकराता रोड चौड़ा हुआ, अब आढत बाज़ार की बारी है
फिर भी जाम से परेशां है जनता क्यूंकि लाल बत्ती के घंटुओं
की निकली सवारी है
सनराईस बेकरी के रसों की कुरकुराहट अभी भी चाय का लुत्फ़
बढाती है
काउंटडाउन के चीनी व्यंजनों की महक अभी भी दिल
को ललचाती है
गाँधी पार्क के सामने जोशी भाई के बूफे में ब्रेड रोल, बर्गर
उसी गरमजोशी से परोसे जाते हैं
गैलोर्ड की आइस क्रीम खाने खिलवाने आज भी मुरीद पलटन बाज़ार
जाते हैं
राजपुर का एम् डी डी ए पार्क फंटूबाज़ी का नया हैप्पनिंग अड्डा है
शहर की कुछ सडकें छोड़ बाकी सब और गड्ढा ही गड्ढा है
ओरिएंट सिनेमा के दाई व भाई लोग सब नौकरीपेशा हो गए
कुछ नेता बने कुछ सफ़ेद पोश बन बीवी बच्चों में खो गए
हॉस्टल के लडके व लड़कियों ने सामाजिक उथल पुथल मचा डाली
लोकल लड़कियों के दिलों में आरी चला अपनी अलग पहचान
बना डाली
बुड्ढे बुढिया के दिन फिरे, अब पी जी से खूब आय होती है
बुड्ढा शाम कुत्ता घुमाता और बुढिया चैन से सोती है
कवि सम्मलेन कव्वालियों के दिन लदे अब “मिस उत्तराखंड”
का जमाना है
रोज विरोध प्रदर्शन, जलूसों व ज्ञापन देने का रोज
गाना बजाना है
वही आशिकी है, वही रूमानियत है बस कपडे थोडे छोटे हो गए
हैं
आशिकी का रूप बदला है सो बटुए थोडे मोटे हो गए हैं
कहावत है कि देहरादून में हाथ पड़ते और बरसात पड़ते देर
नहीं लगती
ना रामपुर की लड़की को, न देहरादून के लड़के को पराई नगरी देर
तलक नहीं फब्ती
मैगी पॉइंट में हर शाम हर रोज आशिकों की महफ़िल सजती है
आज भी गुच्छु पानी में, दारु पिए दीवानों की धुन बजती है
ऊताराखंड पुलिस के सिपाही खेत में लगे पुतले से हर ओर दिख जाते हैं
यूपी पुलिस की माफिक वो दबंगई रुतबा न दिखा पाते हैं
मसूरी से दून तक आज भी मोटरसाइकल न्यूट्रल में ही आती है
मस्तानो की टोली अब भी देश का कीमती तेल बचाती है
डी ए वी कॉलेज आज भी उतना ही दबंग और दाई है
बाकी सारे स्कूल और कालेज, अभी भी उसके छोटे बहिन व भाई है
I love my Dehradun….

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