
बीजेपी का आरोप और उसके पीछे का तर्क
लीह में 24 सितंबर की रात को जब राज्यत्व और छठी अनुसूची की मांगें धुंधली हुईं, तो हिंसा ने सड़कों को आग की लकीर से भर दिया। चार लोगों की मौत और करीब नब्बे घायल होने की खबरें सभी तरफ फेंकी गईं। इस स्थिति में बीजेपी ने तुरंत ही कांग्रेस को जिम्मेदार ठहराते हुए, काउंसिलर फुंतसोग स्टैंजिन त्सेपग की पहचान फंसा दी।
पार्टी ने बताया कि उनके पास वीडियो साक्ष्य हैं, जिसमें कांग्रेस के नेताओं को युवाओं को लड़ाई के लिए उकसाते दिखाया गया है। इन वीडियो के आधार पर उन्होंने कहा कि यह ‘स्वैच्छिक युवा आंदोलन’ नहीं, बल्कि एक ‘राजनीतिक साजिश’ है, जो नागरिकों की जान को खतरे में डाल रही है।
- भेद्य जनसंख्या के बीच बड़ी संख्या में युवा जुटे, परन्तु पार्टी का मानना है कि यह लोकप्रिय आंदोलन नहीं, बल्कि दिशा-निर्देशों का पालन है।
- बीजेपी ने लद्दाख हिल काउंसिल सचिवालय और अपने स्थानीय कार्यालयों को भी जलते हुए दिखाया, जिससे आरोप और भी गंभीर हो गया।

कांग्रेस और सामाजिक सक्रियकों की प्रतिक्रिया
कांग्रेस ने तुरंत प्रतिकार किया, अपने प्रवक्ता पवन खेरा को कहा कि यह ‘केंद्र की विफल नीतियों’ के कारण हुआ है। 2019 में जम्मू-कश्मीर के पुनर्गठन के बाद लद्दाख के विशेष अधिकारों को लेकर निरंतर टकराव चल रहा है, यही कांग्रेस का मानना है कि इस तनाव का मुख्य कारण है।
इसके साथ ही जलवायु कार्यकर्ता सोनम वांगचुक ने कहा कि कांग्रेस के पास लद्दाख में इतने बड़े परिणाम निकालने की क्षमता नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि इस आंदोलन में मुख्यधारा में लद्दाखी लोग ही सक्रिय हैं, न कि किसी बाहरी पार्टी की अफवाहें।
सरकार ने भी तुरंत कदम उठाए। लीह में कर्फ्यू लादी गई, इण्डो‑तिब्बती बॉर्डर पुलिस, CRPF और स्थानीय पुलिस को तैनात किया गया। कारगिल में भी शट‑डाउनों से बचने के लिए सावधानी बरती गई।
अंत में यह कहना बेकार नहीं होगा कि लद्दाख में हुई इस हिंसा के कई पहलू अभी भी अस्पष्ट हैं। एक तरफ़ बी.जै.पी. की ठोस साक्ष्य की दावेदार बातें, तो दूसरी तरफ़ कांग्रेस की राजनीतिक आलोचना और सामाजिक कार्यकर्ताओं की निरपराधी अभियांत्रण। आगे क्या होगा, यह देखना बाकी है।
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