सुनों बे, तुमको पाने से कहीं ज़्यादा इम्पोर्टेंट हैं तुमको ख़ुश देखना। हमारे पास होने से ज़्यादा ज़रूरी है साथ होना। ये जो तुम कम्फ़र्ट ज़ोन में जाकर हमसे कुछ भी बकर बकर बोल देती हो न.. हाँ जब तुम नहीं होती हो तो बहुत मिस करते हैं इसको। तुम्हारी पुरानी चैट हिस्ट्री पढ़कर कहानी सूझ जाती है। हमको पता है के तुमको ढलता सूरज देखना बहुत पसंद है, पर हमको न हमको तो ढलता सूरज देखने से ज़्यादा ढलता सूरज देखती तुम पसंद हो। तुम जब काली वाली साड़ी पहन के सामने आजाती हो न तो साला हम ख़ुद से गले लग कर ईद मना लेते हैं। तुम्हारी आँखे ही हमारी सेंवई है और तुम्हारी मुस्कराहट हमारी गुझिया। तुम तो डार्लिंग हो बे हमारी।
कई बार सोचते हैं के साला तुम्हारे साथ ज़िंदगी गुज़ारनी होती न तो हम भगवान से इस जनम के लिए अमरता का वरदान माँग लेते वो हम दोनों के लिए! और ज़िन्दगी भर तुम्हारी चाँदनी में भीगते रहते। तुम्हारे मुस्क़ियाने पे साला पूरा दिल, दिमाग़, किडनी, लीवर सब न्योछावर कर देते और कहीं जब तुम हँस देती तो आए हाय हाय हाय हाय! सारा क़रेज़ा भी तुम्हारा। पर इस सब से कहीं बढ़ कर कर तुम्हारे साथ इस लम्हे को जीना।इस पल में तुम्हारे साथ होने को महसूस करना। तुम्हारा मोरल सपोर्ट से तो ऐसा लगता के हम एक बार फिर से ग्रेजुएट हो जाएँगे। वो भी bio से। यार जानेमन हो बे तुम।
जानते हैं जब तुम फिर से सामने होगी न तो हमारी सारी हेकड़ी निकल जाएगी। दिल थर-थर थर-थर काँपेगा और ज़ुबान मनमोहन हो जाएगी। और तुम किसी मोदी की तरह अपनी जादुई बातों से लाखों (के) सपने दिखाकर लंदन निकल जाओगी। पर हम अड़े रहेंगे केजरीवाल की तरह। लप्पड़ भी खाएँगे और बेज्जत भी होंगे पर सुनो! शपथ भी हम ही लेंगे। तुम्हारे साथ तुम्हारे लिए और तुम्हारी कलाई थाम कर। हमारा इंतज़ार क़तई मत करना क्यूँकि हम ज़रूर आएँगे।
तुम कहती थी कि तुम किसी की ज़िन्दगी में सेकंड नहीं बनना चाहती! यार सेकंड, थर्ड, फ़ोर्थ का तो पता नही पर आख़िरी बनाना चाहतें हैं तुमको। आख़िरी साँस वाला आख़िरी। बुढ़ौती तुमरे संग काटनी है जी हमको।
तुमसे प्यार नहीं है बे! डार्लिंग हो तुम। प्यार शब्द इतना ब्रॉड है फिर भी तुम्हारे आगे बहुत टुच्चा लगता है हमको। तुम जो बेबाक़ी से कुछ भी बोल देती हो ना हमसे, हाँ बस यही बेबाक़ी तो हमारी जान निकाल लेती है। तुम्हारे होंठ, नाक, कान, गला इस सब की तारीफ़ करने के लिए समय ही कहाँ मिलता है हमें? जब देखते हैं तो तुम्हारी आँखों में ही खोए रहते हैं।
तुमने पूछा था न हमसे कि हमको किस तरह की लड़कियाँ पसंद हैं? सूट वाली? या वेस्टर्न आउट्फ़िट वाली या दोनो? तो सुनो, हमको तो सिम्प्ली सी तुम पसंद हो यार! हाँ तुम। ये जो तुम्हारी ज़ुल्फ़ें तुम्हारे माथे से आते हुए आँखों पे आकर अटकती हैं न बिलकुल ऐसा लगता है जैसे चाँद पे वो जो ख़ूबसूरत सा दाग हो। तुमसे तो कई दफ़ा इश्क़ का बाप हो चुका है हमको।और जब वो तुम अपना नाम हमारे सरनेम के साथ लगा के ख़ीस बघारती हो न साला क़रेज़ा फनफ़ना के बाहर आजाता है हमारा! क्या करें जी? हम भी इंसान ही हैं झटका हमको भी लगता है। हमारे यू.पी. के लौंडे तो उनके मुस्क़ियाने तक को ही शादी के लिए हाँ मान लेते हैं तुम तो फिर भी हमको देख के हसती हो। तुम्हें पता है के तुम्हारी सादगी ही तुम्हारा ग़हना भी है और हथियार भी! जिसे दिखा कर तुम मुझे हर रोज़ लूट लेती हो.. हर रोज़!
तुम तो साला हमको ऐसे मिली हो जैसे मनरेगा के मज़दूर को माधुरी, केजरीवाल को दिल्ली, मछुवारे को व्हेल, मालगाड़ी के डराइबर को बुलट ट्रेन, जनरल टिकट वाले को ए.सी और रिक्शे वाले को विदेशी! यार सच बतायें तो ख़ुशियाँ टिकती ही कितने दिन है? पर हाँ तुम्हारे साथ बीते इन्ही कुछ दिनों में जैसे सदियाँ जी ली हों हमने! किशोर, मुकेश, रफ़ी और लता जी सबकी आवाज़ में अब तुम्हारा ही विडीओ चलता है। तुमको खोने का डर नहीं है हमें क्यूँकि अब तो बस तुम ही एक ऐसी हो जिसे कोई चाह के भी नहीं छीन सकता हमसे।
ये जो रात में हमारी उँगलियों में टाँका बाँध के सोती हो और हमसे कहती हो के तुम भी सो जाओ स्वीट ड्रीम! तो मैडम ये जो आप हमारे सीने पे सर रख के सोई हैं और ऊँगली पकड़ कर पूरा हाथ थाम लिया है बस यही तो हमारा स्वीट ड्रीम है। वो कौन सी लाइन है? अरे हाँ..
“एक ही ख़्वाब देखा है कई बार मैंने,
मेरे घर की चाभियाँ उलझी हों तेरी साड़ी में!”
तो भइया बस यही है हमारा ख़्वाब और यही हमारा स्वीट ड्रीम। और हाँ ये भी तो सुन लो जब पहली बार तुमको देखा था न तो एक नज़र वाला इश्क़ हो गया था वो तो धीरे धीरे इश्क़ का बाप हुआ है। साला तुम हो ही ऐसी के बंदा प्यार न करे तो क्या करे? वो लता जी वाला गाना भी न दरअसल तुम्हारे लिए ही गाया गया था..
“ओ सुख मेरा लेले, मैं दुःख तेरे लेलूँ..
तू भी जिए… मैं भी जियूँ! हाय!!
आजा पिया तोहे प्यार दूँ, हो.. गोरी बइयाँ तोहपे वार दूँ!”
प्रेम को सीमाओं में नही बाँधती तुम! शायद तभी हम दोनों में सब कुछ असीमित है!
बस एक ही आकांक्षा है मेरी, तुम्हारे लिए नहीं तुम्हारे साथ सपने देखना चाहते हैं! तुम्हारे लिए नहीं तुम्हारे संग जीना चाहते हैं। तुम्हारे लिए लिए नहीं तुम्हारे साथ ख़्वाबों को पूरा करना चाहते हैं। क्यूँकि उस टू बी एच के फ़्लैट में जब हम बेड पे लेटे लता मंगेशकर जी की आवाज़ में “लग जा गले के फिर ये हँसीं रात हो न हो..!” सुन रहे होंगे ना तो उस वक़्त मेरे कंधे पे सिर और उँगलियों का टाँका बनाए वहाँ लता जी नहीं बल्कि तुम होगी। तुम! ताउम्र!