Ek Choti si pream kahani

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वो मुँह पे स्टॉल नही बाँधती थी, कभी भी नही! मैं जब भी पूछता तो बोल देती के “काली हो गयी तो भी क्या फ़र्क़ पड़ना है? तुम तो मिल ही गये हो!” चश्मे हमेशा मैचिंग के ही पहेनती थी! चश्मे के पीछे बड़ी बड़ी भूरी आँखे जिनके चारो तरफ़ हमेशा ही काजल का एक बॉर्डर सा बना होता था. बहुत बोलती थीं वो आँखें, कई बार सुना है उनको हर बार बोलती के “मुझे ले चलो अपनी दुनिया में, यहाँ नही रहना मुझको! मैं ख़ुश हूँ तुम्हारे उन ख़याली पुलाव में!”
वो मुलाक़ात भी याद है जब तुमसे मिलने तुम्हारे शहर आया था और तुम्हारी स्कूटी पे तुमने अपने शहर का भ्रमण कराया था! तिरपाठी के बाद पहली बार किसी और की ड्राइविंग एंज्वाय की थी। ख़ैर तुम अपने उस बीकानेरी रेस्टोरेंट की जगह ग़लती से उसके बग़ल के बार में ले के चली गयी थी, कितना झेंप गयी थी तुम! वो मुलाक़ात सबसे यादगार थी मेरी! उसके एक एक पल को संजोये रखा है मैंने दिल की किताब में! वो हम दोनो के हाथ वाली फ़ोटो जिसमें हम दोनो ने एक दूसरे के अंगूठे को मुट्ठी में बाँध के रखा है, उसे देखते ही एक मुस्कान खिल उठती हैं गालों पर! उन १५-२० सेकेण्ड में धड़कन थम सी गयी थी और वक़्त ठहर सा! उस ए.सी. रेस्टरों में भी तुम्हारा हाथ बहुत गरम था और मेरा बहुत ठंडा!
हम दोनो की कोई भी पसंद(सिवाए एक दूसरे के) मेल नही खाती! हर एक चीज़ में कोंट्रीडिक्शन है, हर राय में मत भेद है! झगड़े की शुरुआत तो नही पता होती पर अंत मेरे माफ़ी माँगने पे ही ख़त्म होता है! पहली मुलाक़ात भी हम दोनो की एक ट्रेज़डी ही थी! अच्छा लगता है जब ये अब देखते हुए भी हम दोनो साथ रहते हैं! तुमको जितना मेरी दाढ़ी से नफ़रत है उतना ही मुझे इनसे प्यार, समझा करो यार इस दाढ़ी मे बिना दाढ़ी की तुलना में कम बेवक़ूफ़ दिखता हूँ!
तुम्हें पता है तुम्हारे गालों पे वो हल्के पिंपल्स जमते हैं तुमपे, तुम्हारे वो प्यारे से होंठ जब इतनी बुलंद आवाज़ निकालते हैं तो हैरान सा हो जाता हूँ मैं! तुम्हारे गाए हुए गाने जब सुनता हूँ तो तसल्ली होती है के अभी भी कोई है को मुझे मुझसे ज़्यादा चाहता है! तुम अक्सर जब “लग जा गले के फिर ये हसीं रात हो न हो…” गाती हो न तो जी करता है तुमको कभी न छोड़ें!उस वक़्त उसी गाने में ज़िंदगी सी पा जाता हूँ मैं! तुम ज़िद्दी हो, बहुत ज़िद्दी.पर कभी तुमसे जुदा होने डर नही रहता! भरोसा है तुमपे उतना ही जितना ख़ुद पे करना चाहता हूँ!
तुम्हारा ज़िंदगी में आना, साथ होना, साथ रहना और साथ देना था तो अनिक्स्पेक्टेड पर कभी कभी जैसे कुछ प्लानड सा लगता है! तुम्हारे साथ वो रात को मरीन ड्राइव का सफ़र हो या तुम्हारा मेरे कमरे पे आके उसकी हालत देख के बड़बड़ाना, हर एक लम्हा ख़ास सा होता है मेरे लिए!
सुनो, मैं आऊँगा एक दिन! सारे वादे पूरे करने, वो ख़याली पुलाव जो हम दोनो ने पकाए थे उन्हें आँच देने! मेरी वो कहानी जिसकी हीरोईन तुम हो उसका हीरो बन्ने! तुम्हारी उँगलियों में अँगूठी पहनाने! तुम्हारे सूट की डोरी बाँधने! अपनी बाहों में भरने, तुम्हारी आँखों को सुनने! उन लॉंगड्राइव को मुकम्मल करने जिनमे मेरे बाइक की स्पीड बढ़ाने पे तुम मुझको कस के जकड़ लेती थी! वो रातों को रोड पे ग़लत गाना गाने जिन्हें तुम बीच में टोक के सही कर देती थी! मैं आऊँगा! तुमको ले जाने! अपने साथ! मेरी दुनिया में, तुम्हारी दुनिया में, हमारी दुनिया में..
क्यूँकि इश्क़ किसी उम्र, जात, धर्म या सीमाओं का मोहताज नही होता.. ये परे है इन सब से, जैसे की हमारी भावनाएँ!

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