जानिए, नोट बैन करके मोदी ने कितना काला धन कम कर दिया!

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500 और 1000 के नोट बंद होने के बाद बैंकों के बाहर लंबी कतारें हैं. ATM मशीनों का बुरा हाल है. 100 का नोट सर्वोपरि है और लोग कम खर्चे में गुजारा करने को मजबूर हैं. ये हालात अस्थायी ही सही, लेकिन आम पब्लिक के लिए परेशानी पैदा करने वाले हैं. 

नोटबंदी के कई पहलू हैं और उपरोक्त बात उसमें से एक है. दूसरा पहलू ये भी है कि देश में मौजूद ‘लिक्विड ब्लैक मनी’ एक झटके में खत्म हो गया है.
8 नवंबर को रात 8:17 बजे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने काला धन रखने वालों के पास चार घंटे से भी कम का वक्त छोड़ा था अपना ‘इंतजाम’ करने के लिए. इतनी सी देर में जूलर्स की दुकानों पर लाइनें लग गई थीं. हवाला बाजार में देर रात तक ऊंची कीमतों पर सोने और डॉलर्स के सौदे होते रहे. इन्हें रोकने के लिए आयकर विभाग को छापेमारी तक करनी पड़ी.
शुक्रवार को नोट बंद हुए 10 दिन पूरे हो गए और इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट के मुताबिक सरकार के इस कदम से लगभग तीन लाख करोड़ रुपए का काला धन खत्म होने का अनुमान है. 30 सितंबर से पहले जब सरकार ने लोगों को खुद ही आगे आकर काले धन की जानकारी देने का मौका दिया था, तो उस दौरान करीब 65 हजार करोड़ रुपए ‘सफेद’ हुए थे.

काला धन कितना और कैसे कम हो गया?

एक अनुमान के मुताबिक हमारे देश में 17 लाख करोड़ की नकदी चलती है. 10 दिन पहले तक जब 500 और हजार के नोट चल रहे थे, तो ये कुल नकदी में 80 परसेंट की हिस्सेदारी रखते थे. जब ये नोट बंद हुए, तो 13.6 लाख करोड़ रुपए एक झटके में बाजार से बाहर हो गए. हालांकि, नोट बदले जा रहे हैं, तो ये पैसा मार्केट में वापस आ जाएगा. लेकिन, अनुमान है कि सरकार के इस बोल्ड कदम से लगभग तीन लाख करोड़ रुपए का काला धन खत्म हो गया है.
वैसे इस मामले में कोई आंकड़ा प्रूव इसलिए नहीं किया जा सकता, क्योंकि भारत में रोजाना 2.7 लाख करोड़ रुपए का लेन-देन होता है और इसमें 80 फीसदी नकदी से होता है. इसका हिसाब रखना मुश्किल है. ऐसे में ये तो निश्चित है कि बड़े नोट बंद होने की वजह से काला धन खत्म हो रहा है, लेकिन ये तीन लाख करोड़ रुपए से कितना कम या ज्यादा है, इस पर दावा नहीं किया जा सकता.

देश में कितना है काला धन

एक रिपोर्ट आई थी. अमेरिका की ग्लोबल फाइनेंशियल इंटेग्रिटी की, जिसका टाइटल है, ‘विकासशील देशों में गैर-कानूनी धन का प्रवाह 2004-2013’. इस रिपोर्ट के मुताबिक, 2004 से 2013 के बीच करीब 505 अरब डॉलर यानी लगभग 33.3 लाख करोड़ रुपए का काला धन भारत से बाहर गया. इस रिपोर्ट से पहले 2007 में वर्ल्ड बैंक ने अनुमान लगाया था कि भारत में जितना काला धन है, वो देश की जीडीपी के 23.7 फीसदी के बराबर है.
कुछ इकॉनमी एक्सपर्ट्स मानते हैं कि भारत में जितना काला धन है, वो देश की कुल जीडीपी के 15 से 25 परसेंट के बराबर है. हालांकि, कुछ लोग इसे कुल इकॉनमी का 50 परसेंट से भी ज्यादा मानते हैं. 2015 के आखिर में स्विस सेंट्रल बैंक और SNB ने जो आंकड़े जारी किए थे, उनके मुताबिक स्विस बैंकों में भारतीयों का 1.2 खरब डॉलर का काला धन जमा है.

किस सेक्टर में कितना?

2014 के आंकड़ों के मुताबिक इंडिया का रियल एस्टेट सेक्टर 6.5 लाख करोड़ रुपए का है. काला धन ठिकाने लगाने के मामले में ये सेक्टर लोगों की पहली पसंद है. 2012 में जनवरी से जून के बीच इकट्ठा किए गए आंकड़े बताते हैं कि उस समय हुए कुल लेन-देन का 30 फीसदी पैसा काला धन था.
2015 के फिगर्स के मुताबिक भारत में जूलरी का कारोबार 3.1 लाख करोड़ रुपए का है, जिसमें रत्न वगैरह भी शामिल हैं. एक अनुमान के मुताबिक इस सेक्टर में होने वाले 70 से 80 परसेंट लेनदेन काले धन से किए जाते हैं.
2016 के फिगर्स बताते हैं कि रोजाना यूज होने वाले जनरल सामान का सेक्टर 83,127 करोड़ रुपए का है. सबसे ज्यादा घपला इसी में होता है. देश के उपभोक्ता बाजार के राजस्व का 50% से ज्यादा हिस्सा सरकार की जानकारी के बाहर है. 2012 के आंकड़ों के मुताबिक देश में सट्टेबाजी में 3 लाख करोड़ रुपए इधर से उधर किए जाते हैं और ये सारा का सारा पैसा ब्लैक मनी है.

राजनीतिक पार्टियां भी पीछे नहीं

कांग्रेस और बीजेपी, दोनों ही पार्टियां काले धन की लड़ाई में आगे दिखना चाहती हैं, लेकिन जब खुद पार्टी के खर्चों की बात आती है, तो चीजों में विरोधाभास दिखाई देता है. एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स की रिपोर्ट बताती है कि कांग्रेस अपनी जो आय दिखाती है, उसका 93.8 परसेंट गुमनाम स्रोतों से आता है और बीजेपी की कुल आय के 91.3 फीसदी रुपयों का यही हाल है. कई क्षेत्रीय पार्टियां ऐसी हैं, जिन्हें चंदे में जितना पैसा मिलता है, वो उससे कहीं ज्यादा खर्च कर देती हैं.
काले धन की इस लड़ाई में आम आदमी तो जूझ ही रहा है और यूपी चुनाव ने कई राजनीतिक पार्टियों की नींद हराम कर रखी है. ऐसे में सरकार के इतने बड़े कदम के बावजूद अगर राजनीतिक पार्टियां बड़े धन-बल के साथ यूपी चुनाव में ताल ठोंकती हैं, तो सियासत पर शक होना लाजिमी है.

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