नोट बैन ने नरेंद्र मोदी को विनर बना दिया है

0
591
Share on Facebook
Tweet on Twitter
बैन हो चुके हजार के नोट
ये आर्टिकल मूलत: डेली ओ के लिए सुनील राजगुरु ने लिखा है, जिसका हिंदी तर्जुमा हम आपके लिए पेश कर रहे हैं.

नोटबंदी का सही मतलब अभी तक सही तरीके से स्पष्ट नहीं हो पाया है, क्योंकि ये सरकार द्वारा उठाया जाने वाला एक दूरगामी कदम है. हमें इसका फाइनल रिजल्ट आने वाले महीनों या आने वाले सालों बाद ही पता चल पाएगा. लेकिन, इस बड़े कदम का अब तक का प्रभाव असाधारण रहा है. आप पूरे भारत में लंबी कतारों और जनता में असंतोष की बात कर सकते हैं, पर जब एक बार जब ये पूरा मामला सुलझ जाएगा, तो लोग सारी बातें भूल जाएंगे. असल में हमारी जनता की फितरत ही ऐसी है. 2जी और कोयला घोटाले जैसे मामले सालों तक चले (या बोफोर्स जैसे मामले जो कि दशकों तक चले) और 2014 में कांग्रेस के सत्ता से बेदखल होने के कारण भी बने, लेकिन आज लोग इन पर बात नहीं करते.
सरकार के पुराने नोटों को बदलने पर उंगली पर स्याही लगाने के फैसले के बाद से बैंकों के बाहर लाइनें छोटी हो गईं हैं. इससे पता चलता है कि नोट बदलने की कतार में आम आदमी से ज्यादा काले धन वालों के नुमाइंदे थे. सरकार ने नोट बदलने की प्रक्रिया में एक सीमा भी तय कर दी है. अब जो चीज हल करने के लिए बची है, वो है ATM के बाहर लगीं लंबी कतारें. सरकार के पास अभी भी इस महीने के अंत तक का समय है, क्योंकि हार्ड कैश की मांग अगले महीने से जबरदस्त तरीके से बढ़ने वाली है.
नोटबंदी के मुद्दे पर हुए ज्यादातर ओपिनियन पोल्स के मुताबिक जनता सरकार के इस फैसले के साथ खड़ी है. विपक्ष इस फैसले के विरोध में है और लोकसभा का ये सेशन भी अब तक इसी मुद्दे को लेकर तूफानी बना रहा. दिल्ली में विपक्षी पार्टियों ने सरकार के इस फैसले के खिलाफ मार्च निकला और रैलियां भी की, जिसे इस फैसले के सैट बैक के रूप में देखा जा रहा है. पर, ऐसा है नहीं. किसी को भी सरकार के इस फैसले के प्रभाव को लेकर कोई भ्रम या संदेह नहीं है. पर इस फैसले को लागू करने की वजह से कुछ अफरा-तफरी जरूर दिखाई दे रही है.
लोग भी इन राजनीतिक दलों के विरोध को नादानी भरा कदम मान रहे हैं, क्योंकि ऐसा दीखता है कि इस तरह का विरोध करके वो कहीं भ्रष्टाचारियों के सपोर्ट में तो नहीं हैं. आम आदमी पार्टी के अरविंद केजरीवाल का सरकार के इस फैसले का विरोध तो और भी हास्यास्पद लग रहा है, जबकि वो भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन से निकले नेता हैं. 2011 में केजरीवाल पूरी ताकत के साथ करप्शन के खिलाफ आंदोलन कर रहे थे, पर आज वो एक ऐसे फैसले का विरोध कर रहे हैं, जिससे करप्शन कम होगा. केजरीवाल के इस कदम से उनकी एंटी करप्शन वाली इमेज खराब हो सकती है. यहां तक कि केजरीवाल के गुरु अन्ना हजारे, जो हर मुद्दे पर ठंडी-गरम प्रतिक्रिया देते रहे हैं, उन्होंने भी सरकार के इस फैसले की तारीफ की और कहा, ‘नया इंडिया करप्शन फ्री सोसाइटी की ओर बढ़ रहा है.’
दुनियाभर के अधिकतर अर्थशास्त्रियों ने भी सरकार के फैसले की तारीफ की है. उनका कहना है कि आखिरकार भारत ने अपनी इकॉनमी के पैरेलल चल रही ब्लैक इकॉनमी को खत्म करने का साहस दिखाया है. हम एक कैशलेस अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ रहे हैं और भारतीय मिडिल क्लास इस कॉन्सेप्ट को स्वीकार कर रहा है. इस फैसले को भारत के बाकी हिस्सों में विरोध का सामना जरूर करना पड़ा, लेकिन अब ऐसा नहीं है. क्रेडिट-डेबिट कार्ड और पेटीएम का इस्तेमाल बढ़ चुका है और बढ़ता ही जा रहा है. इस फैसले का विरोध कर रहीं छोटी दुकानें अब वापस बिक्री की ओर लौट चुकी हैं और उनका फिर से विरोध पर जाने का कोई इरादा नहीं दिख रहा. छोटे दुकानदार भी अब पेटीएम अकाउंट के जरिए दुकानदारी में लग गए हैं. आजकल ऐसी दुकानों के बाहर बोर्ड लगे मिलते हैं, ‘वी एक्सेप्ट पेटीएम’.
लोगों का ये रवैया एक संदेश है कि जनता अब सब कुछ एक नई उम्मीद के साथ देख रही है. रिपोर्ट्स के मुताबिक इस फैसले से नक्सलियों, आतंकियों और यहां तक कि कश्मीर के स्टोन-पेल्टर्स को फंडिंग करना बहुत मुश्किल हो जाएगा. इसमें कोई संदेह नहीं है कि सरकार के इस कदम ने ऐसे ग्रुप्स को चेक-मेट कर दिया है. सरकार इस स्थिति को लॉन्ग टर्म के लिए जारी रखना चाहती है.
ब्लैक मनी रखने वालों को इस फैसले से खासा नुकसान हुआ है. इससे लोगों ने नोटबंदी की घोषणा होते ही अफरा-तफरी में 1000 और 500 के नोटों को जला दिया या बाहर फेंक दिया. कुछ गरीब लोग कमीशन के लिए उनके पैसे को एक्सचेंज करने के लिए लाइन में लग रहे हैं. इसी बहाने गरीब भी कुछ पैसे बना रहे हैं. कुछ कालाधन जमाखोरों ने बड़ी संख्या में अपने कालेधन को जमा भी किया है और इसके लिए वो सरकार को भारी पेनल्टी दे रहे हैं. इस तरह काले धन का एक हिस्सा सफेद हो रहा है. सरकार के पास इसी बहाने बड़ी संख्या में टैक्स भी आ रहा है. इस समय भारत में सभी का आधार कार्ड बनाया जा रहा है, ताकि सभी पर नजर रखी जा सके. हर किसी का बैंक अकाउंट खोला जा रहा है, जिससे ज्यादा से ज्यादा ब्लैक मनी को सिस्टम में वापस लाया जा सके. विदेशी बैंक के खाते को भी तेजी से खंगाला जा रहे है. हालांकि, ये एक लंबे समय तक चलने वाला प्रोजेक्ट है.
सबसे बड़ी बात ये है कि देश में लोगों का माइंडसेट बदल रहा है. इस सरकार ने एक कड़ा फैसला लेकर कालेधन वाले सेठों के मन में ईश्वर का डर पैदा कर दिया है. इस समय हर कोई जान रहा है कि सरकार कालेधन पर गंभीर है. अब आगे क्या होगा? क्या इस तरह का मजबूत फैसला ज्यूलर्स और गोल्ड माफियाओं के खिलाफ भी लिया जाएगा? क्या रियल एस्टेट और बेनामी प्रॉपर्टी पर भी सरकार इस तरह का कदम उठाएगी? फिलहाल भ्रष्टाचारी पूरी ताक में होंगे और अंदाजा लगा रहे होंगे कि सरकार का अगला स्टेप क्या हो सकता है. “चलता है” वाली नीति, जो कालेधन की सबसे बड़ी वजह है, अब जा चुकी है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वास्तव में एक बेहद साहसिक फैसला लिया है. साथ ही, अपने इस कदम से जनता का दिल भी जीता है. मीडिया की नेगेटिव स्टोरीज और पॉलिटिकल पार्टियों के विरोध के बावजूद उनकी छवि को कोई नुकसान नहीं हुआ. कालेधन के खिलाफ पहली हैवीवेट लड़ाई का राउंड-1 पूरी तरह से मोदी के पक्ष में रहा है. इसका अगला राउंड 2017-18 में खेला जाएगा और देखने वाली बात ये होगी कि क्या मोदी का ये दांव 2019  के लिए सबसे बड़ा दांव होगा!

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here