सही और गलत कोई मूर्त धारणा नहीं है. दोनों की ‘समग्रता’ को छुआ नहीं जा सकता, क्योंकि उसका वजूद ही नहीं है. इसीलिए ये दुनिया दलीलों से चलती है. उसी से तय होता है अपना-अपना सही. और अपना-अपना गलत.
हिंदी न्यूज चैनल ‘NDTV इंडिया’ पर एक दिन के बैन की खबर पर इससे पहले भी ठीक-ठाक बात हो रही थी. पक्ष और विपक्ष दोनों में. लेकिन शुक्रवार रात 9 बजे चैनल के प्राइम टाइम प्रसारण के बाद इसने बड़ा रूप ले लिया.
पुनर्कथन
सरकार का कहना है कि पठानकोट हमला कवर करते हुए इस चैनल ने कुछ ऐसी जानकारी सार्वजनिक कर दी थीं, जो ‘कूटनीतिक तौर पर संवेदनशील’ थीं और जिनसे आतंकियों को एयरबेस की खुफिया चीजें पता लग सकती थीं. सरकार को 6 मिनट के टेलिकास्ट पर आपत्ति है, जो 4 जनवरी 2016 को 12:25 से 12:31 के बीच हुआ था. एंकर के सवाल के जवाब में रिपोर्टर ने पठानकोट एयरबेस के भूगोल के बारे में कुछ बातें कहीं. सूचना प्रसारण मंत्रालय ने इसे देश की सुरक्षा के संबंध में लापरवाही माना और चैनल को नोटिस भेज दिया कि 9 नवंबर के दिन 24 घंटे के लिए चैनल का प्रसारण रोकना होगा.
इस पर चैनल का पक्ष है कि सिर्फ उसे ही इस तरह निशाना बनाया जा रहा है जबकि सभी चैनलों और अखबारों में पठानकोट हमले की ऐसी ही कवरेज थी. चैनल का बयान है, ‘पठानकोट हमले पर NDTV की कवरेज खास तौर पर संतुलित रही. प्रेस को जंजीरों में जकड़ने वाले आपातकाल के काले दिनों के बाद इस तरह की कार्रवाई असाधारण है. NDTV सभी विकल्पों पर विचार कर रहा है.’
नया मोड़
‘एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया’ ने भी इसकी तुलना ‘इमरजेंसी’ से कर दी है. लेकिन शुक्रवार रात चैनल ने सरकार पर ‘रचनात्मक’ तरीके से पलटवार किया, जिसके बाद सोशल मीडिया पर NDTV को मिल रहा समर्थन बढ़ा है. इससे सरकार समर्थकों का जश्न और चुटकुले कुछ मद्धम पड़ने लगे हैं.
रात 9 बजे एंकर रवीश कुमार प्राइम टाइम में हाजिर हुए और दिल्ली के स्मॉग से बात शुरू करते हुए वह ‘PM 2.5’ कणों तक गए, जिसके लोगों ने कई अर्थ निकाले. फिर कहा, ‘ये कार्बन काल है, यही तो आपातकाल है.’ उनका इंट्रो खत्म हुआ तो मूक अभिनय (माइम) करने वाले दो कलाकार स्टूडियो में बैठे दिखाई दिए. उनके सहारे रवीश ने सरकार पर व्यंग्यपूर्ण सवाल किए. चैनल ने बहुत स्मार्ट तरीके से इस पूरे मामले को गृह राज्य मंत्री किरण रिजिजू के उस हालिया बयान से जोड़ दिया, जिसमें उन्होंने कहा था कि प्रशासन और पुलिस की हर बात पर शक करना और सवाल पूछना अच्छा कल्चर नहीं है.
ये बाइट दिखाने के बाद रवीश कुमार ने कहा, ‘अथॉरिटी और पुलिस कब सवाल से मुक्त हो गए. अथॉरिटी का मतलब है जवाबदेही. बगैर जवाबदेही के अथॉरिटी या पुलिस कुछ और होती होगी. जब हम सवाल नहीं पूछ पाएंगे, कुछ बता नहीं पायेंगे तो क्या करेंगे.’
कथ्य
इस प्रोग्राम में रवीश कुमार ने जो दो मूक अभिनय वाले कलाकार बुलाए थे, उनमें से एक को वह ‘अथॉरिटी जी’ और दूसरे को ‘ट्रोल जी’ कह रहे थे. चेहरे पर सफेदी पोते हुए ये दोनों कलाकार ऐसी भाषा बोल रहे थे जो किसी को समझ नहीं आती और रवीश के सामान्य सवालों पर कभी गुस्से में घूरते, कभी पागलों की तरह चीखते. लेकिन जब उनसे कोई ‘मीठा’ सवाल पूछा जाता, मसलन- ‘क्यों सर, बागों में बहार है?’ तो वे खुश हो जाते और इसी गाने की धुन में गाने लगते.
इसमें शो में रवीश ने ‘अथॉरिटी जी’ और ‘ट्रोल जी’ से जो बातें कहीं, उन्हें कोई संदर्भ से काटकर पढ़े तो वे एकबारगी ‘अजीब’ और ‘अप्रासंगिक’ लग सकती हैं. लेकिन फिलवक़्त सोशल मीडिया पर वे राजनीतिक व्यंग्य का पर्याय बनकर उभरी हैं. चैनल के समर्थन में लोग रवीश कुमार के ये ‘वनलाइनर्स’ अपने सोशल अकाउंट्स पर लिख रहे हैं और कवर फोटो पर लगा रहे हैं. सरकार के खिलाफ एक भी शब्द लिखे बिना और इसमें विरोध प्रदर्शन की सायास ध्वनि चस्पा है, जिसे हर कोई समझ रहा है.
क्षेपक
शुक्रवार के प्रोग्राम से NDTV ने ये संदेश भेजने की कोशिश की है कि उन्हें राजनीतिक द्वेष के चलते बैन का नोटिस भेजा गया है, क्योंकि उनका चैनल सरकार से तीखे सवाल पूछता रहा है.
सोशल मीडिया पर इस शो की खूब चर्चा हो रही है. कुछ इसे ‘रचनात्मक प्रतिरोध’ कह रहे हैं तो कुछ एक ‘स्मार्ट’ दांव मान रहे हैं. बहुत सारे लोग इसके खिलाफ भी लिख रहे हैं. इसे नाटक बता रह हैं. NDTV भी अब तक सरकारी नोटिस के खिलाफ कोर्ट नहीं गया है और वह इसे सरकार के खिलाफ ‘प्ले’ कर रहा है. हालांकि रवीश ने अपने शो में चैनल का बयान पढ़ते हुए ये जरूर कहा कि उनका चैनल सभी विकल्पों पर विचार कर रहा है. ये विकल्प अदालती होगा या नहीं, ये जल्द पता लग जाएगा.
पर फिलहाल ट्विटर-फेसबुक पर चर्चा का जैसा आलम है, शो बिलाशक हिट रहा. फेसबुक पर लोगों से अपील की जा रही है कि 9 तारीख को वो NDTV के समर्थन में जगह-जगह से फेसबुक लाइव करें. अपनी तीखी हेडलाइंस के लिए मशहूर कोलकाता के अखबार ‘द टेलीग्राफ’ ने इसे फ्रंट पेज पर इस तरह रिपोर्ट किया है.
कथावस्तु 2.0
लेकिन दोनों तरफ के ट्रोल्स की बातें छोड़ दें, तो इस शो पर कुछ लोगों ने निराशा भी जाहिर की है. ‘दी लल्लनटॉप’ के रीडर अनुतोष ने हमें एक चिट्ठी भेजी है, जिसमें लिखा है कि वह रवीश का शो जटिल चीजों को समझने के लिए देखते थे, लेकिन शुक्रवार को निराश रहे. उन्होंने लिखा किबेहतर होता कि शो में सरकारी नोटिस के एक-एक शब्द की पड़ताल की जाती, उससे जुड़े कानून की बात की जाती. दूसरे देशों में इसके क्या नियम हैं, इस पर बात होती. उन्होंने लिखा, ‘रवीश की यूएसपी ये रिसर्च है, नाटक और इमोशनल ड्रामा नहीं.’
सोशल मीडिया पर ही कुछ लोगों ने लिखा है कि चैनल की प्रतिक्रिया ऐसी है, जैसे वह सरकार से सवाल करने वाला देश का इकलौता मीडिया समूह है. कुछ लोग इस चैनल की ‘सीमित पहुंच’ को आधार तंज कर रहे हैं. किसी ने ये भी लिखा है कि NDTV समूह ईडी जांच के दायरे में है, इसलिए सरकार को ‘द्वेष’ निकालना होता तो उसके लिए आसान रास्ता उपलब्ध था. चैनल इस आधार पर अपनी गलती जायज नहीं बता सकता कि बाकी चैनल भी वही गलती कर रहे थे.
हालांकि ये स्वागत योग्य है इस बहाने मीडिया का बड़ा हिस्सा कमोबेश एक साथ दिख रहा है, जो सरकार के लिए बहुत प्रिय स्थिति नहीं है. कुछ लोगों ने ये भी लिखा है कि जब बाकी मीडिया समूहों पर हमला होता है, जब उनके रिपोर्टर की संदिग्ध स्थिति में मौत हो जाती है, जब उनकी पिटाई हो जाती है, जब सरकारी नोटिस मिलते हैं, तब ये एकजुटता क्यों नहीं दिखती?
विस्तार
इस बहाने कुछ लोग कोई पक्ष चुने बिना ‘मूल मुद्दे’ पर भी लिख रहे हैं, जो है आतंकी घटनाओं की रिपोर्टिंग किस तरह की जाए. कई देशों में पत्रकारों को ‘कॉन्फ्लिक्ट रिपोर्टिंग’ की ट्रेनिंग दी जाती है, लेकिन भारत का इतिहास इसे लेकर अच्छा नहीं है. युद्ध, दंगे और आतंकी घटनाओं की कवरेज में भारतीय मीडिया से चूकें हुई हैं. क्या यह वाकई ‘देश की सुरक्षा बनाम सत्य के प्रसारण’ का मसला है या ऐसा बना दिया गया है? क्यो कोई अंतर्विरोध है? मुंबई हमले के समय भी ये बहस उठी थी. ‘बैन कल्चर’ ठीक नहीं है, लेकिन बेहतर ही हो कि इसी बहाने मीडिया ये तय कर ले कि आतंकी हमलों की रिपोर्टिंग वह कैसे करेगी.
खैर, रवीश के शो ने चर्चा बटोरी है और लोग इसे जल्दी नहीं भूलेंगे. इस शो में कहे गए जो ‘वन लाइनर्स’ वायरल हो रहे हैं, वे नीचे पढ़ें:
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Source – Thelallantop.com