Nowhere man navjot singh sidhu left hanging after arvind kejriwals blunt message (बुझी बुझी सी रंगत जिसकी, उड़ी उड़ी खुशबू, नाम है सिद्धू!)

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      फोटो क्रेडिट: reuters, News Credit : Thelallantop.com 

अभी दो दिन पहले AAP नेता मनीष सिसोदिया एक न्यूज स्टूडियो में पत्रकार दिबांग से रूबरू थे. उनसे पूछा गया कि नवजोत सिंह सिद्धू आम आदमी पार्टी में आए तो किस भूमिका में अच्छा काम करेंगे, मुख्यमंत्री कैंडिडेट या स्टार प्रचारक?
जवाब मिला, ‘स्टार प्रचारक’.
इस पर दिबांग बोले, ‘आपने जवाब दे दिया. ओह ये सारी लड़ाई तो खुल गई. वो चाह रहे हैं कि मुख्यमंत्री उम्मीदवार बनें और आप चाह रहे हैं कि स्टार प्रचारक बनें.’
सिसोदिया का जवाब था, ‘हो सकता है वो ये दोनों चीजें न चाह रहे हों. कोई तीसरी चीज़ चाह रहे हों.’
बात ठहाकों में गुम हो गई. लेकिन नवजोत सिंह सिद्धू के राजनीतिक भविष्य पर अब भी कोहरा छाया हुआ है. वैसे अरविंद केजरीवाल के बाद मनीष सिसोदिया ने भी शनिवार को दोहराया कि सिद्धू से बातचीत बिगड़ी नहीं है. सिद्धू ने सोचने के लिए थोड़ा और समय मांगा है.
लेकिन असल बात यही है कि सिद्धू राज्यसभा से इस्तीफा देकर फंस गए हैं. अमतृसर और दिल्ली दोनों शहरों के पक्षियों ने तस्दीक की है कि सिद्धू पंजाब का मुख्यमंत्री उम्मीदवार बनना चाहते थे, लेकिन AAP अपने संविधान से समझौता करने को राजी नहीं हुई.
अब जो डील नवजोत सिंह सिद्धू और उनकी पत्नी के पास रह गई है, वो ये है कि चुनाव जीतने के बाद AAP सिद्धू की पत्नी को कैबिनेट में जगह देगी और सिद्धू केंद्र में पार्टी को आगे बढ़ाने का काम करेंगे. लेकिन पेच इसलिए फंसा है क्योंकि कांग्रेस के पास सिद्धू के लिए बेहतर सौदा है.

क्या है कांग्रेस का प्रपोजल?

कांग्रेस उनकी पत्नी को जीतने के बाद कैबिनेट में जगह तो देगी ही, सिद्धू की फेवरेट अमृतसर लोकसभा सीट भी लौटाएगी. अकाली दल के दबाव में सिद्धू को अमृतसर से टिकट नहीं मिला था. यहां से अरुण जेटली चुनाव लड़े थे और कांग्रेस के कैप्टन अमरिंदर सिंह से हार गए थे. कैप्टन अमरिंदर सिंह की नजर अब मुख्यमंत्री की कुर्सी पर है.
कांग्रेस का प्रस्ताव है कि अमरिंदर के विधानसभा जाने के बाद अमृतसर लोकसभा सीट खाली हो जाएगी और उपचुनाव में यहां से सिद्धू को टिकट दे दिया जाएगा. लेकिन सवाल ये है कि सिद्धू अपनी पूरी राजनीतिक उम्र में जिस कांग्रेस की विचारधारा के खिलाफ रहे हैं, अपनी गर्वीली शख्सियत से समझौता करके वह किस मुंह से कांग्रेस का पटका पहन लें? ऐसा करके अपने समर्थकों को क्या जवाब देंगे?
पंजाब चुनाव में काम कर रहे AAP से जुड़े पक्षियों ने बताया कि सिद्धू का सबसे नेगेटिव पॉइंट ये है कि वो अदालत में दोषी करार दिए जा चुके हैं. AAP के संविधान के मुताबिक, ऐसे किसी शख्स को चुनावी टिकट नहीं दिया जा सकता, मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बनाना तो दूर की बात है. दूसरा नेगेटिव पॉइंट ये है कि सिद्धू बिना अंकुश के हाथी हैं. बीजेपी में भी वो पार्टी लाइन से अलग बात कहने में हिचकते नहीं थी.
तीसरी बात, सिद्धू ने मुख्यमंत्री उम्मीदवारी के साथ कुछ और शर्तें भी रखी थीं, जिन पर केजरीवाल सहमत नहीं हुई. सिद्धू टिकट बंटवारे में भी अपनी निर्णायक हैसियत चाहते थे. साथ ही अपनी टीम के साथ AAP जॉइन करना चाहते थे.
#WATCH: ‘Jab Modi lehar aayi toh virodhi toh doobe hi, Sidhu ko bhi dubo diya’ says Navjot Singh Sidhuhttps://t.co/GdnoITA46I

— ANI (@ANI_news) 25 July 2016

तो क्या सिद्धू कहीं के नहीं रहे?

बीजेपी की राज्यसभा सीट छोड़ चुके इस वाचाल पूर्व क्रिकेटर के पास अब क्या विकल्प हैं?

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तीनों पार्टियों में से सबसे आकर्षक डील कांग्रेस के पास है. लेकिन क्या वो अपनी राष्ट्रवादी सोच ताक पर रखकर कांग्रेस में जाएंगे? जिन्हें उम्र भर गरियाया, उनके साथ बैठेंगे?

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दूसरी तरफ है बीजेपी. तकनीकी तौर पर सिद्धू ने अब तक सिर्फ राज्यसभा से ही इस्तीफा दिया है, पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से नहीं. तो क्या सिद्धू अपनी रही सही इज्जत बचाकर बीजेपी में वापस चले जाएंगे? लेकिन ये ऑप्शन भी आंखों-देखी मक्खी निकालने से कम नहीं, क्योंकि अब बीजेपी में लौटने के बाद उनकी क्या प्रतिष्ठा बचेगी, ये सब जानते हैं.

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AAP की बची-खुची डील लपेट ली जाए. पंजाब में चुनावी सर्वे फिलहाल AAP के पक्ष में हैं. केजरीवाल जो भी दें, उसे याचक की तरह स्वीकार लें और उनकी राजनीति के नए झंडाबरदार बन जाएं.

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लेकिन ठहरिए. एक चौथा विकल्प भी है. खबर उड़ रही है कि पंजाब चुनावों में सिद्धू सारे बागियों को लेकर नई पार्टी बनाने की भी सोच रहे हैं. कोशिश होगी कि केजरीवाल की संभावनाओं को जितना संभव हो, नुकसान पहुंचाया जाए. साथ ही अपना शक्ति प्रदर्शन करके बीजेपी के करीब भी आ जाएं.
एक समस्या ये भी है कि अब तक नवजोत सिंह सिद्धू पंजाब और दिल्ली के उतने नहीं हो पाए, जितने मुंबई के हुए. मनोरंजन इंडस्ट्री में वो इतना आगे जा चुके हैं कि फिलहाल पांव पीछे लेने का कोई संकेत नहीं मिलता. इसलिए एक बड़े दल में ‘पार्ट टाइम’ वाली राजनीति ही उनकी दिनचर्या के ज्यादा मुफीद है. नई पार्टी बनाने के बाद जो पापड़ बेलने पड़ते हैं, और जो चिप्स काटने पड़ते हैं; वो ये सब कर पाएंगे, इसमें संशय है.
तीन एपिसोड पहले कपिल शर्मा ने ठिठोली करते हुए अपने शो के मेहमानों से पूछा था, ‘सिद्धू जी किनके हैं? इनके, हमारे या ‘आप’ के?’
मामूली चीजों पर भी उन्मुक्त अट्टहास के लिए विख्यात सिद्धू तब हंस नहीं पाए. अपने हास्य-सिंहासन पर बैठे हुए मुस्कुराने लगे और हास्य मिश्रित खीझ में अपनी मेज पर पड़ी कोई चीज़ फेंककर मारने की एक्टिंग करने लगे. तभी सुनील ग्रोवर के किरदार ने पूछा, ‘ये सवाल है कितने रुपये का’. कपिल का जवाब था, ‘रुपया कोई नहीं मिलेगा, लेकिन देश का मीडिया आपका आभारी रहेगा.’
इसके बाद सिद्धू एक ठहाका लगा पाए. शो जब टेलिकास्ट हुआ तो पब्लिक को कपिल की इस शरारत में आनंद आया. लेकिन ये तो कोई भी बता देगा कि स्टूडियोज के बाहर आज कल सिद्धू के चेहरे की रंगत उड़ी हुई है.
फिल्म ‘चांदनी चौक टु चाइना’ में एक गाना आया था, जिसके बोल थे:
हो सपने देखे बड़े बड़े
बड़ा न कुछ भी करना पड़े
बुझी बुझी सी रंगत जिसकी
उड़ी उड़ी खुशबू
गली गली हर नुक्कड़ उसके
चरचे हैं हरसू
नाम है सिद्धू!
नाम है सिद्धू!

News source  – http://www.thelallantop.com/ (All Credit Goes to Thelallantop.com)

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