
राज्यत्व आंदोलन – क्या है, क्यों शुरू हुआ और आज कहा तक पहुँचा?
आप कभी सोचे हैं कि ‘राज्यत्व’ शब्द हमारे रोज़मर्रा की भाषा में कैसे आया? मूल रूप से इसका मतलब है ‘राज्य का स्वरूप’ या ‘सरकारी ढांचा’। 1970‑80 के दशक में कई भारतीय कवियों, लेखकों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने इस शब्द को एक आंदोलन के रूप में इस्तेमाल करना शुरू किया। उनका मकसद था कि जनता को सरकारी नीति‑निर्धारण में भागीदारी की ज़रूरत समझाई जाए।
आंदोलन की शुरुआती छापें
राज्यत्व आंदोलन की बुनियाद 1972 में दिल्ली के एक छोटे से साहित्यिक समारोह में रखी गई। वहाँ एक समूह ने कहा, ‘हम चाहते हैं कि सरकार के काम में आम लोग भी आवाज़ दें’। इस विचार ने धीरे‑धीरे कई विश्वविद्यालयों, छोटे शहरों और ग्रामीण इलाकों तक पहुँच बनाई। लोग साक्ष्य‑आधारित रिपोर्ट, जनमत संग्रह और आवाज़‑उठाने वाले मंचों के माध्यम से अपनी मांगें रखे।
मुख्य मांगें बहुत सी थी: स्थानीय स्तर पर निर्णय‑लेना आसान बनाना, भ्रष्टाचार को रोकना और विकास योजनाएँ सीधे लोगों की ज़रूरतों के साथ मिलाना। उस समय के प्रमुख लेखकों ने कविताएँ और निबंध लिखे जो इस आंदोलन की लोकप्रियता बढ़ाते रहे।
मुख्य कदम और बदलाव
1985 में एक बड़ी सफलता मिली जब several राज्य legislatures ने ‘Citizen’s Review Boards’ बनाये। ये बोर्ड स्थानीय लोगों को सरकारी योजनाओं की निगरानी करने का अधिकार देते थे। इसके बाद 1991 में ‘Right to Information Act’ (RTI) का मसौदा तैयार हुआ, जिसका मूल विचार राज्यत्व आंदोलन में ही निहित था – जनता को सरकारी दस्तावेज़ देखने का अधिकार देना।
1995 में राष्ट्रीय स्तर पर एक सम्मेलन हुआ जहाँ विभिन्न राज्य‑स्तर के प्रतिनिधियों ने मिलकर एक ‘आधारभूत ढांचा’ तैयार किया। इस ढांचे में पारदर्शिता, जवाबदेही और भागीदारी के सिद्धांत शामिल थे। सरकार ने इन सिद्धांतों को अपनाकर कई योजनाओं में जनता के प्रतिनिधियों को शामिल किया, जैसे जल परियोजनाओं में ग्राम सभा का गठन।
आज भी राजस्व, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे क्षेत्रों में राज्यत्व आंदोलन के विचार लागू होते हैं। कई NGOs और डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म इस आंदोलन को नई तकनीक से सपोर्ट कर रहे हैं – ऑनलाइन फीडबैक फ़ॉर्म, मोबाइल ऐप्स और सोशल मीडिया के जरिए नागरिक सरकार से जुड़ते हैं।
यदि आप अपने शहर या गाँव में इस परिवर्तन को देखना चाहते हैं, तो सबसे पहले स्थानीय पंचायत या नगर परिषद की बैठकों में भाग लें। अक्सर ये मीटिंग्स सार्वजनिक होती हैं और आप सीधे सवाल पूछ सकते हैं। आप अपने इलाके की NGOs से भी जुड़ सकते हैं, क्योंकि वे अक्सर ‘participatory budgeting’ यानी भागीदारी वाली बजटिंग प्रक्रिया में मदद करती हैं।
राज्यत्व आंदोलन सिर्फ़ एक इतिहास नहीं, बल्कि एक चलती हुई प्रक्रिया है। इससे सीखने की सबसे बड़ी बात है कि जब लोग मिलकर आवाज़ उठाते हैं, तो सरकार भी बदलने को तैयार हो जाती है। आप भी अगर अपने अधिकारों को जानना और उपयोग करना चाहते हैं, तो स्थानीय स्तर पर छोटे‑छोटे कदम उठाएँ – चाहे वह वोट देना हो, शिकायत दर्ज करना हो या किसी योजना की निगरानी में भाग लेना हो। इस तरह आप राज्यत्व आंदोलन के मुख्य लक्ष्य – ‘जिम्मेदार, पारदर्शी और लोगों‑के‑लिए‑सरकार’ – को आगे बढ़ा सकते हैं।
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25 सित॰