Munnabhai on Metro..

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Shirish has written a beautiful dialouge between Muunabhai and Circuit. Very interesting to read. Shirish has kindly permitted me to post this here. Thanks to Shirish.

Please read..

भाई : ए सर्किट अरे आपुन अब मिनिस्टर हो गयेला है तो अपनेको अपने शहर के वास्ते कुछ करना मंगता है.
सर्किट: हां भाई सही है .
मुन्ना भाई : ए सर्किट आपुन के दिमाग मी एक आईडिया आयेल्ला है. साला आपुन अपने शहर मे मेट्रो बनायेगा.
सर्किट: भाई मेट्रो कायको?
मुन्ना भाई : अरे आपुन परसो दिल्ली गया था तो मेट्रो मे मस्त घुमा. साला मजा आ गया. साला सब बडे शहरो मे मेट्रो है. तो अपने शहर मे भी होनेको मांगता है. वैसे भी अपुनके शहर का पब्लिक वो खटारा बस मे घुमती है.
सर्किट: भाई फिर एक दो चार सौ बस मंगा लेते है ना? सस्ते मे काम हो जायेगा .
मुन्ना भाई : अबे सर्किट तू एकदम मामू है रे. अभी बस का जमाना गया. मुन्ना भाई देगा तो मेट्रो देगा. पब्लिक भी क्या याद करेगी . और उससे बोलेतो अपने शहर की बहुत शान बढेगी!
सर्किट: हा भाई ये बात भी सही है. पर भाई ये मेट्रो बनायेंगे कहा?
मुन्ना भाई : तू एक काम कर. अपुन के शहर का नक्षा लेके आ.


Circuit Go To Get Map Of The City…After That
मुन्ना भाई : अब मैं आंख बंद करके एक जगे उंगली रखता हुं. तू भी वैसा ही कर.
सर्किट : हं रखा भाई.
मुन्ना भाई : अब देख इधर से इधर मेट्रो बनानेका.
सर्किट : भाई लेकीन इधर से उधर जायेगा कौन?
मुन्ना भाई : कौन बोलेतो अबे मेट्रो जायेगी!
सर्किट: पार भाई, लोग इधर से उधर नही जाते है.
मुन्ना भाई: अरे सर्किट एक बार मेट्रो तो जाने दे फिर लोग भी जायेंगे. अछछा एक बात बोल वो दिल्ली का मेट्रो कोन बनाया?
सर्किट: कोई दिल्ली का बाबू है भाई. उठा के लाऊ क्या?
मुन्ना भाई : अबे उठा मत साले. तू उसको फोन लागा. उसको बोल अपुन के शहर मे मेट्रो बनानेका है. फटाफट काम शुरू करो.


After Some Time
सर्किट : भाई ये देखो.
मुन्ना भाई : ए सर्किट तू ये किताब लेके क्या कर राहा है? क्या स्कूल वूल जॉईन किया क्या ?
सर्किट: नही भाई ये किताब वो दिल्ली का बाबू भेजा है. बोलता है मेट्रो कैसे बनानेका सब इसमे दिया है.
मुन्ना भाई : अरे तेरी तो. उसको मेट्रो बनाने को बोला किताब लिखने को नही.
सर्किट : हा भाई और इसका दो करोड मांगता है.
मुन्ना भाई: क्या बोलता है ! ए सर्किट वो अपुन को मामू तो नही ना बनारेल्ला ? तू पढा क्या उसमे क्या लिखा है ?
सर्किट: कुछ समजता नही भाई . पर दिल्ली का बाबू ने बनाया तो सहीही होगा भाई.
मुन्ना भाई : अच्छा तो उसको पुछ काम कब शुरू करेगा?
सर्किट: पुछा भाई. वोह बोलता है बहुत खर्चा आयेगा. कर्जा भी लेना पडेगा.
मुन्ना भाई : तो ठीक है कर्जा लेलेंगे.
सर्किट : भाई कर्जा देनगा कौन ? और उसको लौटायेगा कौन?
मुन्ना भाई: अरे कर्जा देने वाले बहुत मामू मिलेंगे रे. तू चिंता मत कर. और लौटाने के लिये अपनी पब्लिक है ना रे!
सर्किट: पर भाई अपुनको फिर पब्लिक के साथ बात करना मांगता है.
मुन्ना भाई: येडा हो गया है क्या? अरे पब्लिक ने वोटे दे के अपुन को जीतायेला है. अभी अपुन सोचेगा बोलेतो पब्लिक ही सोच राहा है ना! तू चिंता मत कर.


After Some Time
सर्किट: भाई एक लफडा हो गया है. कुछ लोगो के हाथ वोह किताब लग गयी है. वो बोलते है उसमे बहुत लोचा है.
मुन्ना भाई: साला ये कुछ लोगो की आदतही होती है मचमच करने की. उनको क्या समझता है? साला खाली पिली वक्त बरबाद करते ! तू एक काम कर. उन लोगो की एक मीटिंग बुला. और वो जो बोलते वोह लिख ले.
सर्किट : और फिर?
मुन्ना भाई: फिर क्या ? अपने को जो करना है वोहीच अपुन करेंगे.
सर्किट: फिर भाई वोह मीटिंग कायको?
मुन्ना भाई: अरे सर्किट. सबका बात सुननेका और खुदको जो करने का है वोइच करनेका इसको डेमोक्रेसी बोलते डेमोक्रेसी ! समझा क्या?
सर्किट: कुछ कुछ समझ मे आ राहा है भाई!
मुन्ना भाई: अब सुन. तू आगे की तय्यारी कर.
सर्किट: आगे की बोले तो. मुन्ना भाई: अरे भूमिपूजन की रे. अपने को १२ तारीख को भूमी पूजन करने का है. सब टी वी वाले, अखबार वाले सब को खबर कर. साला अपुनके शहर के लिये कितना बडा दिन होगा वो !
On 13th
मुन्ना भाई : अरे आ सर्किट आ. देख साला पेपर मे क्या मस्त फोटो आयेला है. देख तू भी किधर किधर दिखरहेल्ला है. टी वी पे तो कल रात से ही चालू है. सब अपुन की तारीफ करेल्ले है !
सर्किट : भाई भूमी पूजा तो हो गया अब आगे क्या करना है? पुब्लिक पुछ रही है मेट्रो का काम कब शुरू होगा?
मुन्ना भाई : अरे ये पब्लिक भी ना बहोत घाई करती है. अभी अपुन ने भूमी पूजा किया है तो एक ना एक दिन मेट्रो भी शुरू हो जायेगा ! उनको बोल चिंता नही करनेका. तू उसको छोड मेरे दिमाग मे नया आयडिया आया है.
सर्किट : कौनसा भाई?
मुन्ना भाई : अरे परसो अपुन कश्मीर गये थे उधर साला आजू बाजू के पहाडो पर क्या मस्त बर्फ गीरेल्ला था. कितना सुंदर दिखता था! साला आपुन के शहर के आसपास भी कितने पहाड है पर किसी के उप्पर बरफ नही. वैसा होगा तो अपुनके शहर की कितनी शान बढेगी ! अपुन साला वो करेगा. सब पहाड पे बरफ का बंदोबस्त करवायेगा .
सर्किट : पर भाई अपने यहा के गर्मी से बरफ पिघल नही जायेगा ?
मुन्ना भाई : अबे सर्किट तू तो मामू का मामू ही रहेगा. अबे सब पहाडी पे बरफ रहेगा तो इधर भी थंडी पड जायेगी ना ? फिर कैसे बरफ पिघलेगा?
सर्किट : सॉलिड भाई क्या आईडिया निकाला है !
मुन्नाभाई : तू एक काम कर वो दिल्ली वाले बाबू को बोल अपुन को पहाडी पे बर्फ चाहिये. वो कैसा करने का उसका एक किताब बनाके भेज दे. पिछली बार क्या मस्त किताब बना के दिया था उसने…………………!

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