फैजाबाद के मरहूम शायर रफीक सादानी फ़रमा गए हैं-
जब से चल गवा है यह संजोग औ पुकार
खप गई सब सरी सुपारी ओफ्फो
अपने बचपन का एक किस्सा याद आता है. मैं छोटा था काफ़ी. एक रिश्ते के दादाजी हमारे घर आए हुए थे. एक सुबह वो नहाने वहाने के चक्कर में पड़े थे. उनकी तंबाकू वाली डिबिया खटिया के सिरहाने रखी थी. हम कहे कि थोड़ा इनको झेलाया जाए. वहां आस पास कुछ बीड़ियां पीकर फेंकी हुई पड़ी थीं. उनको उठाकर एक कुशल वैज्ञानिक की तरह खोला. और बची तंबाकू के अवशेष निकाल कर दादाजी की डिबिया में भर दिया. दादाजी नहाकर लौटे तो डिब्बी खोली. देखा और शरारत भांप गए. सारी तंबाकू फेंक दी. हम कहे कैसे पता चला दादा. वो बोले “तमाखू खाए से बुद्धी तेज चलत है.”
गांव भर के बुजुर्गों की अक्ल क्यों इतनी तेज है. उसकी ‘मास्टर की’ मुझे मिल गई थी. एक दिन हाथ में लिए पीट रहे थे हम. पीछे से पापा ने देखा. और ‘शुद्धि’ की प्रक्रिया चालू हो गई. मार खाकर मम्मी से पूछा कि हमको बुद्धि तेज करने का हक नहीं है क्या? उन्होंने बताया कि इस पगलप्पन में न पड़ो. ये दिमाग नहीं कैंसर देता है. तब से हम गांठ बांध लिए ये बात. कभी तंबाकू, पान मसाला वगैरह को हाथ नहीं लगाया.
इसका कोई अतिरिक्त घमंड नहीं है कि इस ऐब से बच गया. बल्कि कभी कभी हैरत होती है कि लोग कैसे इसमें गिरफ्तार होते हैं. फिर छोड़ नहीं पाते. पहले एक बात क्लियर कर दूं. मुझे तंबाकू को कभी हाथ लगाने वालों से कुछ खास हमदर्दी नहीं है. लेकिन उनकी बड़ी इज्जत करता हूं जिसने इसका शौक फरमाने के बाद इसको लात मार दिया. फिर उसके बाद हफ्तों महीनों मेहनत की अपने दांत चमकाने में. उसके बाद जब वो चटखारे लेकर अपने शौक के दिनों के अफसाने सुनाते हैं तो अच्छा लगता है.
पता है आदमी कैसे पान मसाले और तंबाकू के चक्कर में फंसता है? अभी तो ऐड का जमाना है. आदमी ऐड देख कर टीवी खरीदता है. ऐड देखकर पीएम, सीएम चुनता है. नशा भी ऐड देखकर चुनता है. अजय देवगन एक मसाला बेचते हैं. जिसके दाने दाने में कैंसर का दम है. ऐड वालों की गलती से स्पेलिंग मिस्टेक हो गई और कैंसर की जगह ‘दाने दाने में केसर का दम’ हो गया. ऐसे कई एक्टर्स हैं. अन्नू कपूर राजश्री बेचते हुए बताते हैं “स्वाद में सोच है.” मैं कभी कभी पछताता हूं कि राजश्री क्यों न खाई. शायद सुकरात, प्लेटो और रूसो का एक बटे चार हिस्सा हमारे अंदर भी आ जाता.
बचपन से ही देखा कि पान मसाले को ग्लैमराइज किया जाता है. जिस स्कूल में मैंने 10 साल पढ़ाई की. वो पानमसाला फ्री स्कूल था. वहां स्टूडेंट्स की बात छोड़ो, टीचर और चपरासी तक कभी तंबाकू या केसर का दम लेते नहीं देखे गए. वहां जब बाहर से कुछ कूल डूड आते थे तो पान मसाले की लच्छी अपनी पैंट की बगल वाली जेब से खींचते थे. और दांतों के बीच बेदर्दी से सड़ी सुपाड़ी रौंदते हुए सोचते थे कि ये लड़के उनको देखकर इंस्पायर हो रहे हैं और लड़कियां उनके साथ सुहागरात के सीन इमेजिन कर रही हैं. उन घिनहों को ये नहीं लगता था कि उनके ब्राउन कलर के दांत किसी किस्म के रिश्ते का तार बंधने से पहले ही तोड़ दे रहे हैं.
मैं अपने गांव के ‘धौकल बाबा’ के परिवार से काफी इंस्पायर हूं. उनका पूरा परिवार पान मसाला खाता है. एक ही ब्रांड फेवरेट है सबका. सुबह बाबा मोटर साइकिल लेकर चौराहे पर आते हैं. फेवरेट ब्रांड का पूरा पैकेट पान मसाला ले जाते हैं. दोपहर तक चुक जाता है. उनके यहां प्यार, लड़ाई, रिश्ता हर चीज पर बात और बहस का केंद्र पान मसाला होता है. बिटिया मम्मी से चाय की पत्ती खत्म होने की शिकायत नहीं करती.कहती है ‘मम्मी कमलापसंद चुक गै है.’ उनका सबसे छोटा 17 साल का लड़का एक दिन घर से भाग गया था. रेलवे स्टेशन पर मिला. घर छोड़कर जा रहा था क्योंकि बड़े भाई ने उसका पूरा पैकेट खा लिया था. उसने शिकायत की तो बाबा ने उल्टे उसे ही ठोंक दिया था. बाबा ने वहीं एक गत्ता कमलापसंद उसके नाम लिख दिया.
पान मसाले के इस ग्लैमर में चुंधियाए लोगों को उसके पैकेट पर बने गले हुए गाल और बिच्छू नहीं दिखते. उनको सरकार चाहे 80 परसेंट हिस्से पर छपवाए चाहे 110 परसेंट पर. आदमी को वो दिख ही नहीं सकता. क्योंकि वो पुड़िया फाड़ते हुए सबसे पहले वही हिस्सा फाड़कर फेंकता है. ऐसे ही ग्लैमर में हमारे एक रिश्तेदार गिरफ्तार थे. उन्होंने 15 की उम्र से पान मसाला खाना शुरू कर दिया था. 45 की उम्र तक खाया. उसके बाद पान मसाले ने उन्हें खा लिया.
पहले उनके गले में छोटी सी गिल्टी निकली. बहुत दर्द हुआ तो सरकारी अस्पताल चले चेकअप के लिए. वहां से बड़े अस्पताल भेजा. तब पता चला कैंसर है. वो भी हाथ से निकल चुका. 6 महीने चलेंगे बस. सेवा कर लो. लेकिन घरवाले ऐसे ही हाथ पर हाथ धरे बैठ तो जाते नहीं. उन्होंने इलाज शुरू कराया. कीमो वीमो… अब मत पूछो. बड़ा दर्दनाक इलाज और बोझल जिंदगी होती है वो. मैंने उनके गले से मांस को लटकने और मरने तक देखा. ग्लैमर देखने वाले पिच्चर शुरू होने से पहले जो मुकेश हराने वाला ऐड देखते हैं तो गरिया देते हैं. लेकिन लाइफ इतनी सस्ती नहीं है गुरू. कि 20 रुपए की पुड़िया के चक्कर में अनमोल जिंदगी गंवाई जाए.
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