वो जीत गयी। क्या सच में ? किससे ? कैरोलीना से ? तुम्हे नहीं लगता कि वो जीत गयी हमारी मानसिकताओं से ? तुम्हे नहीं लगता कि वो जीत गयी हमारे तरीको से ? कब तक भारत को गर्व है जैसे अपडेट डालते रहोगे ? तुम्हे नहीं लगता कि वो जीत गयी तुम्हारे उसूलों से ? उस चेहरे को ढंकने वाले घूंघट से ? और सच सिर्फ इतना है कि “तुम्हे नहीं लगता”…तुम्हे बेटियों के आगे बढ़ने की ख़ुशी तो है, पर वो सिर्फ फेसबुक तक। कितने परिवार अब बेटियों को खेलने के लिए परमिशन दे देंगे ? शायद एक या दो, बस। तुम्हे नहीं लगता कि वो जीत गयी तुम्हारे रिवाजों से ? तुम्हारे बेतुके बयानों से ? तुम्हे नहीं लगता।
उसकी जाति मत ढूंढो, ढूंढना है तो अपने अंदर उस जज्बे को ढूंढो। ढूंढना ही है तो उस जड़ को ढूंढो जो तुम्हे उसके जीतने पर बेटी याद आ गयी, हाँ, वही बेटी जिसकी बलि चढ़ाते समय तुमने एक न सोची थी। वो जीत गयी है, हर फेसबुक स्टेटस का हिस्सा बनकर, हर जाति की बेटी बनकर, और फिर भूल जायेंगे उसे सब, जैसे हर खबर को भूल जाते है, अगली खबर के आते ही ? भूल गए न कि पेट्रोल सस्ता हुआ था परसो ? भूल गए न कि उन घोटालों का क्या हुआ जो पिछली सरकार ने किये थे ? भूल गए कि पिछले ओलिंपिक में क्या हुआ था ? तुम्हे याद है कि वो जीत गयी, बस कुछ दिन और। फिर शायद सोना वापिस चांदी बन जायेगा, फिर शायद वो “हमारी बेटी” वापिस खिलाडी बन जाएगी, फिर शायद हमें उसका नाम भी याद न हो। कितने लोगो को उनके इलाके के पार्षद का नाम याद है ? बात करते हैं।
वो जीत गयी। हारकर। और उसके साथ जीती है किसी की मेहनत। किसी की इच्छा। किसी की मन्नत। किसी की दुआ। पर फिर हमने उसे ‘हमारी बेटी’ बना दिया ? कितने लोगो को पता था कि वो ओलिंपिक में खेलने भी गयी है ? कितने लोगो को पता था कि बैडमिंटन में भारत का प्रतिनिधित्व कौन कर रहा है ? कितने लोग नाम भी जानते थे उसका इस सब से पहले ? फिर कहाँ से वो ‘हमारी बेटी’ हो गयी ? फिर कहाँ से वो ब्राह्मण, आदिवासी, सिंधी, बनिया, पंजाबी या कोई और हो गयी ? ये ठप्पे तो हमने लगाए हैं न ? तुम होटल में खाना खाने जाते हो, या बाथरूम में, चलते फिरते, पेड़ से लटकते, यहाँ तक कि क्लासरूम और ऑफिस में भी, कुलमिलाकर एक दिन में पचास से सौ सेल्फी खेंच लेते हो ? और एक खिलाडी, इंटरनेशनल ओलिंपिक में जाकर सेल्फी लेता है और तुम्हे इतना दर्द होता है कि पूछो मत। क्यों? वो हार गए इसलिए ? क्या तुम इतने काबिल हो जो अगर वो नहीं होते तो ओलिंपिक में तुम जाते ? क्या तुम अपना एक सौ एक परसेंट देते हो ? फिर वो जीते या हारें, तुम्हे फ़र्क़ ही क्या पड़ता है। वो जीत गयी। हारकर।
वो जीत गयी। हर बार की तरह एक और प्रतियोगिता। सलाम है उसके जज़्बे को। सलाम है उसकी काबिलियत को। सलाम है उसके गुरु को। उस ममता को। उस पिता की प्रार्थनाओं को। पर तुम्हे क्या, तुम सो जाओ। कल फिर कोई उजाला जब तुम्हारी आँखों में झांके तो उठ जाना, ताली बजाना, और फिर सो जाना। वो जीत गयी। तुम फिर सो जाओ। कल तक कोई नई खबर जरूर आ जाएगी। सो जाओ।